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लुई फिशर की ‘लेनिन और गाँधी’ सन् 1927 में प्रकाशित हुई थी। आधारभूत विचाराधात्मक भिन्नता के बावजूद बीसवीं शताब्दी मुख्यतः इन दो व्यक्तियों की शताब्दी ही रही है। यूरोप ने साम्यवाद के उस मॉडल को सदैव आशंका की दृष्टि से देखा जिसकी स्थापना लेनिन के नेतृत्व में रूस में की गई। लुई फिशर यह मानते हैं कि वह दुनिया में कहीं भी एक नए ढंग की राज्य-व्यवस्था थी जिसके मूल्यांकन के लिए कसौटी भी नई चाहिए। गाँधी उस बोल्शेविज्म के कटु विरोधी थे- उसमें हिंसा की भूमिका और खुली स्वीकृति को देखते हुए। इसे भी लुई फिशर छिपाते नहीं हैं कि गाँधी के बहुत से आतार्किक विचारों और जीवन में उनके अमल से उनकी सहमति नहीं है। लुई फिशर ने, एक जीवनीकार के लिए आवश्यक, गहरी आत्मीयता एवं वस्तुपरकता से दो विपरीत ध्रुवों को साधने की कोशिश की है। इन दोनों में उन्होंने कुछ ऐसे समान सूत्रों की खोज की है, दलित-वंचित जनता के प्रति गहरी संलग्नता, अदम्य आशावाद, कला की सामाजिक भूमिका, सादगी और आदर्श का समन्वय और सबसे अधिक उनकी क्रियात्मक विचारशीलता। दोनों का ही जीवन किसी किताब की तरह खुला था- किसी बड़ी और गहरी नदी के स्वच्छ और पारदर्शी पानी की तरह।
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YASHPAL

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