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“अपने तमाम फिष्ल्मी लटकों-झटकों के बावजूद, हमारे लाख नाक-भौं सिकोड़ने के बावजूद जिस निरन्तरता से ‘बुनियाद’ ने एक-से-एक चरित्रा हमें दिए, वैसे दूरदर्शन ने अब तक के इतिहास में न दिए होगे हवेलीराम का दृढ़ आदर्शवाद, लाजो का धरती जैसा ‘माँ’ - रूप और विभाजन की विभीषिका को पृष्ठभूमि बनाकर चलती हुई कहानी, तमाम उत्तर भारत के आधुनिक मध्यवर्ग की नींव की तरह हमें छूती रही। अगर दूरदर्शन वाले इस सीरियल से मनमानी छेड़छाड़ न करते और जोशी-सिप्पी को थोड़ी अधिक आजशदी देते तो यह आजादी के बाद के परिवार का और इस तरह समाज का राजनीतिक-सांस्कृतिक अध्ययन बन गया होता। फिर भी, इतने दबावों, आपाधापी और सेंसरों के बाद, ‘बुनियाद’ सीरियलों के इतिहास में एक निशान छोड़ने वाला है।” -सुधीश पचौरी
Additional Information
“ ‘बुनियाद’ अगर सीधे शब्दों में कहें तो हिन्दुस्तान की आजशदी के साथ हुए बँटवारे में सरहद के इस पार आ गये लोगों की दास्तान हैµ उनकी ‘बुनियाद’ की यादगार, लेकिन दारुण गाथा। ‘बुनियाद’ इतिहास नहीं है, न ही उसका वैसा दावा रहा, बल्कि वह स्मृति के सहारे रची गयी कथा है। स्मृति, जो सामूहिक है- सरहद के इस और उस पार। उसकी इसी सामूहिकता ने उसे बेजोड़ बनाया और ऐतिहासिक भी। ‘बुनियाद’ का ताना-बाना भले ही इतिहास से जुड़ी स्मृतियों के सहारे बुना गया है, लेकिन उसकी सफलता का भी इतिहास बना। ‘बुनियाद’ डेढ़ सौ से भी ज्यादा कड़ियों तक चला और अपने समय में सबसे ज्यषदा दिनों तक सफलतापूर्वक चलनेवाला धारावाहिक था। वे भारत में टेलीविजश्न की लोकप्रियता के शुरुआती दिन थे। तब भारत में टेलीविजश्न और दूरदर्शन एक-दूसरे के पर्याय समझे जाते थे। ऐसे बहुतेरे लोग मिल जाएँगे, जो यह कहते पाये जा सकते हैं कि उन्होंने ‘बुनियाद’ देखने के लिए ही टेलीविजश्न ख़रीदा। ‘बुनियाद’ इस कारण भी याद रहता है कि उसकी पारिवारिकता, प्रसंगों की मौलिकता और समकालीनता ने कैसे उसके किरदारों को घर-घर का सदस्य बना दिया था। मास्टरजी, लाजोजी, वृशभान, वीरांवली जैसे पात्रा लोगों की आपसी बातचीत का हिस्सा बनकर ‘टेलीविजश्न दिनों’ के आमद की सूचना देने लगे थे। ‘उजडे़’ हुए परिवारों की ‘आबाद’ कहानी के रूप में जिस तरह इस कथा का ताना-बाना बुना गया था, उसमें लेखकीय स्पर्श काफी मुखर था। इसी धारावाहिक के बाद इस तरह की चर्चा होने लगी थी कि टेलीविजन लेखकों को अपनी अभिव्यक्ति का पर्याप्त मौका देता है, कि यह लेखकों का माध्यम है। मनोहर श्याम जोशी टेलीविजश्न के पहले सफल लेखक थे। ऐसे लेखक जिनके नाम पर दर्शक धारावाहिक देखते थे। उस तरह से वे आखि़री भी रहे। टेलीविजश्न-धारावाहिकों ने लेखकों को मालामाल चाहे जितना किया हो, उन्हें पहचानविहीन बना दिया। मनोहर श्याम जोशी के दौर में कम-से-कम उनके लिखे धारावाहिकों को लेखक के नाम से जाना जाता रहा। ‘बुनियाद’ उसका सफलतम गवाह है। टेलीविजश्न धारावाहिक के पात्रों से दर्शकों का अद्भुत तादात्म्य स्थापित हुआ। ‘हमलोग’ की बड़की को शादी के ढेरों बधाई तार मिले थे, तो बुनियाद के दौरान लाहौर में लोगों ने यह अनुभव किया कि हमारा पड़ोसी हिन्दू परिवार लौट आया है।” -प्रभात रंजन “ ‘बुनियाद’ की कहानी एक परिवार की तीन पीढ़ियों की कहानी है। एक ऐसा परिवार, जो विभाजन के समय लाहौर में भड़क उठे दंगों की तबाही में उजड़ने-बिखरने के बाद, पाँच दशकों तक समय के थपेड़ों का मुकषबला कर आज फिर से खु़शहाली की मंजिल तक पहुँचा है। जब ‘हमलोग’ बन रहा था, तब एक बार मनोहर श्याम जोशी से मुलाकात हुई थी। बडे़ काबिल और पढे़-लिखे आदमी लगे। जब ‘बुनियाद’ की बात आयी तो सबसे पहले उन्हीं का ख़याल आया।” -जी. पी. सिप्पी (बुनियाद के निर्माता)
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MANOHAR SHYAM JOSHI

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