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'शमशेर सम्मान' द्वारा सम्मानित कृति -'मोहनजोदड़ो '
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मुअनजोदड़ो की ख़ूबी यह है कि इस आदिम शहर की सड़कों और गलियों में आप आज भी घूम-फिर सकते हैं। यहाँ की सभ्यता और संस्कृति का सामान चाहे अजायबघरों की शोभा बढ़ा रहा हो, शहर जहाँ था अब भी वहीं है। आप इसकी किसी भी दीवार पर पीठ टिका कर सुस्ता सकते हैं। वह कोई खंडहर क्यों न हो, किसी घर की देहरी पर पाँव रख कर सहसा सहम जा सकते हैं, जैसे भीतर कोई अब भी रहता हो। रसोई की खिड़की पर खड़े होकर उसकी गन्ध महसूस कर सकते हैं। शहर के किसी सुनसान मार्ग पर कान देकर उस बैलगाड़ी की रुन-झुन भी सुन सकते हैं जिसे आपने पुरातत्त्व की तस्वीरों में मिट्टी के रंग में देखा है। यह सच है कि किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आपको कहीं ले नहीं जातीं; वे आकाश की तरफ़ जाकर अधूरी ही रह जाती हैं। लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर खड़े हैं; वहाँ से आप इतिहास को नहीं, उसके पार झाँक रहे हैं।
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OM THANVI

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