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सिन्धु घाटी सभ्यता के आख्यान में मोहनजोदड़ो-हड़प्पा हम सभी ने सुना है।यहमुअनजोदड़ोक्या चीज हैवहाँ के लोगमुअनजोदड़ोबोलते हैंमुअनजोदड़ोमुआ यानी मृत और बहुवचन में मुअन मुआ का सिन्धी प्रयोग है।दड़ा यानी टीला।मुअन-जो-दड़ो का आशय मुर्दों का टीला।मुअनजोदड़ोबाद का नाम है।भारत-पाक का बंटवारा क़ुदरती नहींबनावटी है और सिन्धु घाटी सभ्यता दोनों की साझा सभ्यता-संस्कृति है।यात्राएँ जैसी भी होंउनका अर्थ नहीं बदलता।इसलिए कि हर यात्रा में एक अर्थ निहित हैजो उसका स्थायी भाव है।कि किनारे नहीं जाना है।सूरते-हाल जो भी हो।वैसे भी पहुँचना कभी मक़सद नहीं हो सकता।न यात्राओं का।न ज़िन्दगी का।यात्राएँ तो होती ही हैं पहुँची हुई।अपने हर क़दम पर।उसी में सब हासिल-जमा।बशर्ते नज़र ठीक हो और नजरिया भी।ओम थानवी के पास दोनों की कमी नहीं है।बल्कि इफ़रात है।नतीजतनयात्रा के अलावा पढ़ाकू फ़ुरसतों के साथ उन्होंनेमुअनजोदड़ोमें अपने रंग भर दिए हैं।उनका यह नज़रिया ही किताब का असली हासिल है।किसी देश या शहर के ऊपर से उड़ान भरते हुए उसके बारे में सब कुछ जान लेने वाले यात्रा वृत्तांतों से अलगमुअनजोदड़ोमें नए क़रीने से चीजें देखने का सलीका है।गहराइयों में उतरता / टीलों की ऊँचाइयों तक ले जाता।वह आप पर कुछ लादता-थोपता नहीं।साथ चलता रहता है।बहैसियत एक ईमानदार दोस्त।मुअनजोदड़ोकी एक और ख़ास बात: वह यात्रा को रैखिक नहीं रहने देता।बल्कि कई बार अहसास दिलाता है कि आप किसी बहुमंजिला इमारत की लिफ्ट में हैं और हर मंज़िल एक कथा है।हमारे पूर्वजों की अनवरत कथाजो जारी है।अनन्तिम है"।
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OM THANVI

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