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इस पुस्तक का लोकार्पण भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा के हाथों हुआ था, और इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में मुझे भी बॉम्बे से आमन्त्रित किया गया था। अपना भाषण देने के बाद जब मैं मंच पर अपनी सीट पर वापस बैठा तो मैंने मि. घई को बिलकुल अपनी बगल में बैठे पाया। जल्दी ही हमारे बीच यह बात तय हो गयी कि मैं अपनी आत्मकथा लिखूँगा और वे उसे प्रकाशित करेंगे।
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A.K. HUNGAL

Books by A.K. HUNGAL
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