Details
बाबासाहब आम्बेडकर जी के महापरिनिर्वाण के बाद उनके लेखन की समीक्षा और विश्लेषण अनेकानेक पद्धतियों से किया गया है। बाबासाहब के लेखन के अनुवाद जिस प्रकार प्रकाशित हुए, वैसे उनके लेखन की सम्पादित पुस्तकें और खंड भी प्रकाशित हुए हैं। बाबासाहब पर अनेक लेखकों ने लेखन और अनुसन्धान भी किया है। बाबासाहब पर कहानियाँ, कविताएँ और उपन्यास लिखे हैं, बाबासाहब द्वारा लिखे गये लेखन की अपेक्षा उन पर और उनके द्वारा लिखे गये लेखन पर विपुल मात्रा में ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। उनके महापरिनिर्वाण के बाद भारतीय समाज में हुए उतार-चढ़ाव विविध स्वरुप के हैं। उनके विचारों की अनदेखी की गयी। आम्बेडकरी आन्दोलन और समाज में गतिरोध पैदा कर उन्हें चुप कराने का प्रयत्न हुआ।...आज के सन्दर्भ में बाबासाहब के विचार जैसे लागू होते हैं, वैसे दलितों के भविष्य के सन्दर्भ में भी उनके विचार मार्गदर्शक साबित होने वाले हैं। दलित आन्दोलनों के लिए बाबासाहब का लेखन संविधान की तरह है। बाबासाहब के ऐतिहासिक महत्त्व को जानकर दलितों में से कुछ बुद्धिजीवियों ने आत्मसंरक्षक तथा आक्रामक भूमिका अपना ली है। बाबासाहब के विचारों के साथ औरों से तुलना करने का उन्होंने विरोध किया। बाबासाहब ने मार्क्स का विरोध किया इसलिए मार्क्स का विरोध, कांग्रेस को जलता हुआ घर कहा, इसलिए गाँधी जी का विरोध किया, बाबासाहब ने बौद्ध धर्म को स्वीकारा, इसलिए सभी क्षेत्रों में धर्म की परिभाषा का आग्रह किया जाने लगा।
Additional Information
बाबासाहब आम्बेडकर जी के विचारों ने केवल दलितों को ही प्रभावित नहीं किया है अपितु यहाँ के तमाम प्रगतिशील विचारों को भी समर्थन दिया है। परिवर्तनवादी आन्दोलन और उसके कार्यकर्ता आम्बेडकरी विचारों से अपना रिश्ता बतलाते हैं। प्रतिक्रियावादी आन्दोलन और संघटनाएँ भी आम्बेडकरी विचारों के प्रभाव के कारण अन्तर्मुख होकर विचार कर रहे हैं और अपनी भूमिका में कालानुसार परिवर्तन भी कर रहे हैं। बाबासाहब आम्बेडकर जी का विचार समाज परिवर्तन का विचार है। प्रगतिशील और प्रतिक्रियावादी भी समाज परिवर्तन के सम्बन्ध में गम्भीरता से विचार कर रहे हैं। बाबासाहब आम्बेडकर जी के विचारों से केवल निचले तबकों में ही परिवर्तन नहीं हो रहा है, बल्कि समग्र व्यवस्था ही करवट बदल रही है।
About the writer
DR. SHARANKUMAR LIMBALE

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