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हाथ की लकीरें
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· रवि का हँसता-खेलता हुआ बचपन अचानक ही एक दिन ख़त्म हो गया था जब उसने रात और सुबह की सन्धिवेला में अपनी माँ को एक ट्रक में चढ़ते हुए देखा। रोग से जर्जर अपने पिता महेश के साथ परित्यक्त रवि लगभग एक आहत अवस्था में युवावस्था की दहलीज़ की ओर बढ़ता है और अपने को पहले से एक बड़ी और बुरी दुनिया में पाता है। असहनीय दरिद्रता के माहौल में अपना जीवन बसर करते हुए महेश और रवि एक सँकरी-सी जगह में दया और आश्रय पाते हैं। हालाँकि पिता और पुत्र के बिछोह की तुलना में ऐसी कठिनाइयाँ फिर भी काफी सुकून देने वाली हैं। अपनी नियति और प्रसिद्धि की अनजानी राहों पर यात्रा करता हुआ रवि मुम्बई जैसे बड़े शहर में आ जाता है। · महानगर की चहल-पहल और शोरगुल के बीच धीरे-धीरे रवि अपने अतीत से दूर होता जाता है और अपनी सारी ऊर्जा बॉलीवुड के एक सफल संगीतकार के रूप में अपना भविष्य सँवारने में लगा देता है। जब वह धारावी के अपने मधुर दिनों से जुहू के सपनों की ओर मुड़ता है तो वहाँ के गाढ़े दिनों में उसकी दृढ़ता और होशियारी ही उसके काम आती है। जल्दी ही वह पाली हिल में रहकर अपने सपनों को जीने लगता है। उसकी भेंट सन्ध्या से होती है जो एक सुन्दर, सम्भ्रान्त, शिक्षित और नुमायाँ युवती है, जिससे उसका विवाह तय होता है। लेकिन सहसा जब एक दिन रेलवे की पटरियों पर एक लाश मिलती है तो रवि का भरा-पूरा अस्तित्व पुलिस की खोजबीन से हिलने लगता है। पुलिस की जाँच उसके अतीत तक चली जाती है। · भाईचन्द पटेल का यह पहला उपन्यास ‘हाथ की लकीरें’ एक ऐसे युवक की जीवन-गाथा है जिसमें निर्धनता से समृद्धि की ओर एक यात्रा है और खोये हुए बचपन की स्मृतियों के चित्र हैं। ये स्मृतियाँ और ये यात्राएँ कभी क्रमानुसार और कभी व्यतिक्रमानुसार एक साहसी यात्री के अगले पड़ाव की दिशा में बढ़ती रहती हैं।
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Bhaichand Patel

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