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भारतीय समाज और जीवन में तीसरा लिंग सामान्यतः उपेक्षित रहा है इसलिए साहित्य में भी यह एक उपेक्षित विषय रहा है दलित-आदिवासी-स्त्री विमर्श की परम्परा में अब किन्नर विमर्श जुड़ चुका है। हिन्दी में किन्नर विषय को लेकर पहला उपन्यास नीरजा माधव का ‘यमदीप' (2002) आया था, तब से लेकर अब तक किन्नर विषय पर केन्द्रित दर्जन भर उपन्यास और कई कहानी-संग्रह आ चुके हैं। अदेखे यथार्थ और नये विषय के कारण किन्नर साहित्य पाठकों के लिए विशेष आकर्षण का विषय बन रहा है। प्रो. दिलीप मेहरा सम्पादित ‘हिन्दी साहित्य में किन्नर जीवन' पुस्तक इसी विषय पर केन्द्रित है जिसमें किन्नर जीवन से सम्बद्ध उपन्यासों और कहानियों पर श्रमपूर्वक लिखे आलेख हैं। हमारे स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग में सम्पन्न संगोष्ठी की फलश्रुति है-प्रस्तुत पुस्तक। संगोष्ठी में पढ़े गये शोध पत्रों में से केवल चुने हुए कुछ आलेख इसमें शामिल हैं। सम्पादन के लिए मैं प्रो. दिलीप भाई मेहरा को धन्यवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि पाठकों के ज्ञानवर्द्धन में यह पुस्तक मददगार होगी। डॉ. दयाशंकर त्रिपाठी प्रो. एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग सरदार पटेल विश्वविद्यालय वल्लभ विद्यानगर
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Dr. Dilip Mehra

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