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खामोशी के उस पार
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भारत का बँटवारा (1947) इतिहास के चंद गंभीरतम झंझावातों में एक था। एक करोड़ बीस लाख लोग बेघर हो गए, दस लाख जानें गईं; पचहत्तर हजार स्त्रियों के बारे में कहा जाता है कि वे अगवे और तरह-तरह की जबरदस्तियों का शिकार हुईं; परिवार बिखरे; संपत्ति छूटी; और घर उजड़े। इन तमाम हिंसक तथा आप्लावनकारी घटनाओं की यादें अब जन स्मृति की चुप्पियों में खोई हुई हैं। देश विभाजन से प्रभावित असंख्य लोग, लेकिन जब अपने अकेलेपन के साथ होते हैं, इन चुप्पियों के परदे हटने लगते हैं और उन भयावह दिनों की दस्तक सुनाई देने लगती है क्योंकि इनकी देहों और आत्माओं पर उन जख्मों की खरोंचें अभी भी बनी हुई हैं जो 1947 के उन खूनी दिनों की देन है। उर्वशी बुटालिया की यह विलक्षण पुस्तक लगभग एक दशक के शोध कार्य, सैकड़ों स्त्रियों, प्रौढ़ों और बच्चों से लंबी अंतरंग बातचीत और ढेर सारे दस्तावेजों, रिपोर्टों, संस्मरणों, डायरियों तथा संसदीय रिकॉर्डों के आधार पर लिखी गई है। इसके पन्ने-पन्ने पर उन बेशुमार आवाजों और वृत्तांतों को संवेदनशीलता के साथ उकेरा गया है जो आजादी हासिल करने के पचास साल बाद भी हृदयहीनता और उपेक्षा के मलबे में दबी पड़ी थीं-क्योंकि उनसे मुठभेड़ करने का साहस हम नहीं जुटा पाए हैं। इस मुठभेड़ के बगैर यह समझ पाना मुश्किल है कि किन लक्ष्यों को ध्यान में रखकर विभाजन स्वीकार किया गया था और हकीकत में क्या-क्या घटित हुआ-खासकर महिलाओं के साथ।
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URVASHI BUTALIYA

Books by URVASHI BUTALIYA
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