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भारत जैसे विशाल तथा विविधताओं वाले देश की एकता व अखंडता की रक्षा, इस विविधता में समाए एकता के सूत्रों को मजबूत करने के जरिए ही की जा सकती है न कि इस विविधता पर एकसारता थोपने के जरिए। ‘हिन्दू राष्ट्र’ की विचारधारा, जो सभी गैर-हिन्दुओं को राष्ट्रीयता की अपनी परिभाषा से बाहर रखती है, भारत की विविधता पर भी ऐसी एकसारता थोपना चाहती है। वह भारत की बहु-धार्मिक विविधता को तो पहचानने से इनकार करती ही है, उसे भारत की दूसरी तमाम विविधताएँ भी स्वीकार्य नहीं हैं, फिर भले ही यह भाषायी विविधता का मामला हो या क्षेत्रीय विविधता या फिर इथनिक विविधता का ही मामला क्यों न हो! जाहिर है कि इस तरह का विचारधारात्मक रुख अपने आप में ही, आधुनिक भारत की जड़ों को खोदने वाला है।
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SITARAM YECHURI

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