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भारतीय इतिहास का रूप क्या है? अन्तर्जातीय संघर्ष-सामाजिक द्वन्द्व-ऐतिहासिक प्रगति। जातियाँ आयीं, देशस्थ जातियों और समाज में प्रतिक्रिया हुई, संघर्ष हुआ, पारस्परिक आदान-प्रदान और समन्वय हुए और परिणामतः व्यवस्था बदली, समाज में प्रगति हुई, इतिहास का स्रोत आगे बढ़ा। मध्य-युग के समाजोत्थान के पूर्व भारत में भी अन्य देशों की भाँति ही ऐतिहासिक समाज का क्रमिक विकास हुआ। पहले घोर बर्बर, फिर बर्बर-युग। तब पूर्व और उत्तर पाषाण-काल, तदन्तर द्रविड़ और सैन्धव-सभ्यता-युग। इस सैन्धव-सभ्यता के युग तक समाज को किन संघर्षों अथवा किन-किन परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ा, यह स्पष्ट नहीं। कम से कम अभी उनकी प्रगति की मंजिलों की विस्तृत व्याख्या नहीं की जा सकती।
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BHAGWAT SHARAN UPADHYAYA

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