Details
महामन्दी की वापसी
Additional Information
अर्थशास्त्र के नोबल पुरस्कार से नवाज़े गये पॉल क्रुगमैन दुनिया के उन कुछेक लोगों में हैं जिन्होंने 2008 में आये वैश्विक वित्तीय संकट की आहट सुनकर पहले से शोर मचाना शुरू किया था और जब यह संकट उभरा तथा अमेरिका के साथ पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेने की तरफ़ बढ़ने लगा तो इसी पुस्तक के माध्यम से उन्होंने इस तर्क को आगे बढ़ाया कि जिस महामन्दी को अर्थशास्त्री सिर्फ़ बीते जमाने की चीज़ मानने लगे थे. असल में उसके वास्तविक समाधान का 'मंत्र' किसी के पास नहीं है और इसीलिए उसने इतनी खतरनाक वापसी की है। 'न्यूयार्क टाइम्स' के अपने स्तंभ लेखों से वे हर हफ़्ते के बदलावों को पकड़ने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन अपनी इस बहचर्चित पस्तक 'रिटर्न ऑफ़ डिप्रेशन डकानामिक्स' से उन्होंने 1931 की महामन्दी के बाद दुनिया भर में आयी मंदियों की चर्चा करने के साथ उन नीतिगत समाधानों से टकराने की कोशिश भी करते हैं जो बार-बार असफल हुई हैं। मुक्त बाजार के प्रशंसक क्रुगमैन आज भी कीन्स के समाधान को ही सबसे उपयुक्त मानते हैं कि संकट के समय शासन को बाज़ार की मदद करनी चाहिए, लेकिन संकट से निपटने के लिए ही। अर्थव्यवस्था के संचालन में सरकारों और केन्द्रीय बैंकों की भूमिका को महत्त्वपूर्ण मानने के साथ ही वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाओं के कामकाज को भी बार-बार परख कर दोषपूर्ण मानते हैं। पर बहुत ही रोचक शैली में सारी बातें, सारे सिद्धांतों की चर्चा करते हुए वे उन कुछ बहुत ही जरूरी कदमों को गिनवाते भी जाते हैं जो वित्तीय संकटों को टालने के लिए जरूर उठाने चाहिए।
About the writer
ED. ARVIND MOHAN

Books by ED. ARVIND MOHAN
Customer Reviews
- No review available. Add your review. You can be the first.