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पाठकों को नयी-नयी पुस्तकों से और ऐसी पुस्तकें जो जीवन की वास्तविकताओं से परिचय कराती हैं । इसी को सार्थक रूप देना 'वाणी प्रकाशन' का उद्देश्य है । उसी श्रृंखला में प्रस्तुत है, यशोदा सिंह की पुस्तक 'दस्तक' जिसमें में कोई 'सनसनी' नहीं है, कोई 'सेंशेनल' या छौंक-बघार नहीं है । और न ही कोई उस्तादाना 'स्पाइस' या हुनर । यहाँ सिर्फ एक सर्जनात्मक इत्मीनान है । इस पुस्तक में दिल्ली की किसी पुरानी बस्ती या उपनगर या हाशिये पर पड़ी मानवीय बसावट का वृत्तान्त है । जिसमें सिर्फ कई पात्र धीरे-धीरे, एक-एक कर आते हैं और फिर ओझल हो जाते हैं । जैसे कोई कैमरा है, जो कई छवियाँ कागज़ पर उतारता है । ये छवियाँ हमारी स्मृति में अपनी जगह तलाशती हमेशा वहीं रह जाती हैं । पुस्तक मामूली लोगों की गैर-मामूली सहभागिता और पारस्परिकता के ताने-बाने को परत-दर परत उजागर करती एक संवेदनशील मानवीय-गाथा है । आशा है पुस्तक पाठकों को पठनीय और रुचिकर लगेगी ।
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