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सारी दुनिया में स्त्री के जीवन पर भूमंडलीकरण के प्रभाव बहुमुखी, लेकिन विरोधाभासी हैं। राष्ट्र बनाम भूमंडलीकरण या फिर बाजार बनाम समाज जैसे सरलीकरणों पर सवार होकर स्त्री की आजादी के पैरोकार इन प्रभावों का आकलन नहीं कर सकते। अगर भूमंडलीकरण से पहले का जमाना पितृसत्ता का था, तो यह जमाना भी पितृसत्ता का ही है। भूमंडलीकरण की प्रक्रियाएँ इतने स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर नहीं हुआ करतीं, और न ही उनका स्त्री-जीवन पर केवल निषेधक प्रभाव ही पड़ता है। इसीलिए भूमंडलीकरण के खिलाफ एकतरफा फैसला देना जल्दबाजी होगी। पूँजीवाद की ओर अग्रसर होते हुए तीसरी दुनिया के देशों में स्त्री की जो पहचान उभरती है, वह पश्चिमी नकल भर नहीं है। आधुनिक विमर्श में हिस्सेदारी कर रही स्त्री को एक सीमा तक अपना आलोचनात्मक रवैया बनाने में सफलता मिली है।
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Prabha Khaitan

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