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चार दशक से अधिक की अपनी रचनात्मक यात्रा में अशोक चक्रधर हजारों मंचों पर कविताएँ सुनाने चढ़े हैं, उतरे हैं। लेकिन ये मंच आज तक अशोक चक्रधर के मन से नहीं उतरे। कहीं डूबने सुनने वाले श्रोता, कहीं सुनकर कवि को ही डुबोने वाले श्रोता। कहीं माला पर माला, कहीं कवियों का कोई आपसी घोटाला।
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ASHOK CHAKRADHAR

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