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अज्ञेय ने लिखा है समय कहीं ठहरता है तो स्मृति में ठहरता है। स्मृति के झरोखे में काफी कुछ छन जाता है। लेकिन इसी स्मृति को फिर से रचने की संभावनायें खड़ी होती हैं। झरोखों से छनती धूप की तरह वह स्मृति हमें गुनगुना ताप और उजास देती है। ऐसा लगता है मानो हम उस दौर से गुज़र रहे हों। पुस्तक के माध्यम से अपने-अपने अज्ञेय ऐसे ही संस्मरणों का संकलन है । व्यक्तिपरक संस्मरणों में जितना वह व्यक्ति मौजूद रहता है जिसके बारे में संस्मरण है, उतना ही संस्मरण का लेखक भी । यों तो कोई वर्णन या विवेचन शायद पूर्णतः निष्पक्ष नहीं होत, पर ऐसे संस्मरण तो हर हाल में व्यक्तित्व और उसके कृतित्व का विशिष्ट निरूपण ही करते हैं।
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OM THANVI

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