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आधुनिक हिंदी कविता में विचार की स्थिति को देखते हुए ही कविता संबंधी चिंतन और प्रतिमानों में भी परिवर्तन हुआ है। कविता को संघर्षकारी माध्यम के रूप में विकसित करने में विचार की संघर्षमयी भूमिका का प्रतिफलन आधुनिक हिंदी कविता में, विशेष रूप से स्वातंत्र्योत्तर कविता में, लक्षित किया जा सकता है। कविता के मूलगामी प्रमुख तत्त्वों में कल्पना, भाव, विचार सदैव अपनी स्थिति बनाए रहते हैं। सामाजिक मनःस्थितियों की सापेक्षिकात में काव्ययुगों के निर्माण में इन तीनों की स्थिति भी सदैव परिवर्तित होती रहती है। मोटे रूप में छायावादी रुझान अधिक कल्पनाप्रधान थे। छायावादी युग में ‘कल्पना-तत्त्व’ भाव और विचार, की अपेक्षा केंद्रीयता प्राप्त कर गया था, तो नयी कविता के युग में भावक्षेत्र में पड़नेवाला ‘भावनातत्त्व’ बुद्धिसंवलित होकर कंन्द में स्थित रहा। किंतु इसके बाद के काव्य में संक्रमणकालीन हलचलों और विभिन्न दावों के अतिरिक्त ‘विचारतत्त्व’ केन्द्रीय धुरी बनता गया। कविता के तात्विक समीकरण में यह एक बुनियादी परिवर्तन हुआ है। इस विकास की प्रमाणिकता तत्कालीन भारतीय सामाजिक मानसिक विकास में लक्षित की जा सकती है। प्रस्तुत पुस्तक आधुनिक हंदी कविता पर एक दृष्टिविरोध से प्रकाश डालती है। इसके अंतर्गत काव्य के सभी पक्षों को समेटा जा सकता है। यह विचारतत्त्व की दृष्टि से आधुनिक हिंदी कविता का पहला अध्ययन है।
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BALDEV WANSHI

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