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टेलीविजन चुनौतियाँ और संभावनाएं
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आज देश की आधी आबादी टेलीविजन देखती है। तीन चौथाई लोगों को टेलीविज़न की प्रामाणिकता पर पूरा भरोसा है किन्तु भारत की निरक्षर आबादी टेलीविज़न पर दी जा रही खबरों को सच नहीं मानती। सूचना-तन्त्र के माध्यम से निरक्षर आबादी तक जानकारी पहुँचाना आज एक बड़ी चुनौती है। टेलीविजन, प्रभावी रूप से ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत कर सकता है जिनसे ग्रामीण क्षेत्रों को लाभ होगा। इस प्रकार के कार्यक्रम SITE के दौरान चलाये गये थे। ये कार्यक्रम नासा के सैटलाइट द्वारा, दूरदर्शन के माध्यम से, 2400 गाँवों में दिखाये गये थे। बदलते परिदृश्य में डी.टी.एच., केबल टीवी को चुनौती देने लगा है, परन्तु 'मल्टीसिस्टम' भविष्य में अधिक लोकप्रिय हो सकता है जो एक साथ टेलीविजन, टेलीफोन और इंटरनेट सेवाएँ उपलब्ध कराएगा। बदलते परिदृश्य में टेलीविजन मात्र पैसा बनाने वाला उद्योग नहीं हो सकता। जिस प्रकार इसने एक कारगर मार्किटिंग तन्त्र स्थापित करने में सफलता पाई है उसी प्रकार दर्शकों में सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से एक निश्चित सोच पैदा करने में यह अग्रिम हो सकता है। वाणिज्य और सैटलाइट चैनलों की नयी अर्थ-व्यवस्था से पैदा हुई चुनौतियों के बीच सामाजिक का दायित्व निभाया जा सकता है। 'कल्चरल इंडस्ट्री' द्वारा निर्मित कृतियों ने यह सिद्ध कर दिया है कि भविष्य में गेम शो, क्विज, सिटकॉम, सोप ऑपेरा, टेलीफिल्में, बच्चों के कार्यक्रम, समाचार-शो, नये प्रारूपों में प्रस्तुत होते रहेंगे। अतः टेलीविजन, लोकप्रिय संस्कृति के रूप में दर्शकों के विश्वास, व्यवहार और मनोभावों को प्रभावित करता रहेगा तथा नयी टेक्नोलॉजी के साथ-साथ दर्शकों की पसन्द-नापसन्द इसके भविष्य का रूप-आकार निर्धारित करेगी।
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GORISHANKAR RAINA

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