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निराला संचयिता
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निराला का कृतित्व इतना विपुल, वैचिध्यपूर्ण और साथ ही इतना युगातिकामी-निरन्तर प्रासंगिक सिद्ध हुआ है कि श्रेष्ठता या प्रातिनिधिकता, किसी भी दृष्टि से किया गया कैसा भी संकलन न तो विज्ञ पाठकों को, न स्वयं सम्पादक को ही सन्तुष्टि दे सकता है। बड़े कवित्व की एक कसौटी टी.एस. इलियट ने सुझाई थी : विपुलता, वैविध्य और पक्का-पूरा कर्मकौशल-जिस पर खरा उतरने वाले टेनीसन को उसने 'ग्रेट पोएट' ठहराया था। निराला का कृतित्व न केवल इस कसौटी पर ही खरा उतरता है, बल्कि उसे पीछे छोड़ते हुए अपने सम्यक् मूल्यांकन हेतु इससे कहीं उच्चतर कसौटी की माँग करता है। कुछ वैसी ही जैसी कॉलरिज ने अपने समानधर्मा कवि वर्ड्सवर्थ के मूल्यांकन के सिलसिले में अपने सामने रखी थी : 'रिकॉन्सिलियेशन ऑव अपोजिट्स' अर्थात् विरुद्धों का सामंजस्य। निराला की संवेदना जितनी विस्तृत और समावेशी है, उनकी भाषिक चेतना भी उतनी ही व्यापक है। वे अपने कवित्व को, कथाकारत्व को भी हिन्दी के समचे फैलाव में धड़कते महसूस करना चाहते हैं। लगता है, जैसे वे एक ओर तुलसीदास की अवधी से और दूसरी ओर रवीन्द्रनाथ की बंगला से टक्कर ले रहे हों। निराला ने गद्य को 'जीवन-संग्राम की भाषा' कहा है; किन्तु यह भाषा उनके पद्यात्मक कृतित्व यानी काव्य का भी अविच्छेद्य अंग है; और, दूसरी ओर उनके निपट गद्य में भी जिस तरह जगह-जगह सूक्तियाँ कौंध जाती हैं, जिस तरह कभी भी कहीं भी अचानक सतह से उठकर बहुत दूर-दूर की चीजें एक विद्युन्मय तीव्रता और त्वरा के साथ संयुक्त और प्रकाशित हो उठती हैं, वह निखालिस कवित्व का कमाल ही लगता है। निराला का विचार-प्रवण, आलोचनाप्रवण गद्य भी उनके उस कवित्व का ही अविच्छेद्य पक्ष है जो समग्र भारतीय अस्मिता की संवाहिका हिन्दी का, स्वयं निराला और उनके पट्टशिष्य डॉ. रामविलास शर्मा के मुहावरे में कहें, तो जातीय चेतना का, कवित्व था अपने भरे-पूरे अर्थ में मात्र सुधारकों, नीरंध्र परम्परावादियों या निरे साहित्यिकों से उनका भाव-बोध, उनका ज्ञानात्मक संवेदन किस कदर अलग, तीक्ष्ण और गहरा है, यह उनके लेखों-टिप्पणियों का मनन करके ही जाना जा सकता है।
About the writer
ED. RAMESH CHANDRA SHAH

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