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हंस : लम्बी कहानियाँ' के सन्दर्भ में प्रख्यात कथाकार राजेन्द्र यादव के विचार "जिसे हम कहानी कहते हैं, अंग्रेजी में वही' शॉर्ट स्टोरी' है, लेकिन शॉर्ट स्टोरी वह नहीं जिसे हिन्दी के कथा-साहित्य में हम लघुकथा कहते हैं । उपन्यास की तुलना में कहानी का आगमन हिन्दी में खासा देर से हुआ । कहानी का पदार्पण तब तक नहीं हुआ था जब तक पत्र-पत्रिकाओं का छपना शुरू नहीं हो गया । कहानी का जन्म और प्रसार पत्रिकाओं के प्रकाशन की शुरुआत के साथ जुड़ा है और पत्रिकाओं में उपलब्ध स्थान की सीमाओं ने कहानी के विस्तार को सीमित और परिभाषित किया है । 'हंस' के पहले अंक से ही लम्बी कहानी को एक नियमित स्थायी स्तम्भ की तरह शामिल करने का मंतव्य यही था कि कहानी अपनी गुंजाइशों को चरम तक पहुँचा पाए क्योंकि बुनियादी कहानी का सरल विधान वर्णन पर आधारित होता है जबकि कहानी के लम्बे रूपों में नाटकीय संरचना के बीच तत्त्व दिखाई देते हैं । लगभग दस वर्ष तक चलने वाले इस स्तम्भ में लगभग सवा सौ लम्बी लम्बी कहानियाँ छपीं । कभी द्रुत में सामाजिक सरोकारों, दृष्टिकोण की बहुलताओं और टकराहटों को सरपट नापती हुई, कभी विलम्बित में धीरे-धीरे खुलती, फैलती अपने कथ्य के कोनों अँतरों को भरती लास्य में आलस और शिथिल । लम्बी कहानी के सबल और समर्थ कथारूप के तरह स्थापित हो चुकी है, यह आज की युवा रचनाशीलता को देखते स्वयं प्रमाणित है ।"
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ED. RAJENDRA YADAV

Books by ED. RAJENDRA YADAV
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- HANS KE VIMARSH-2 (2 Volume set)
- KAHANI : ANUBHAV AUR ABHIVYAKTI
- KAHANI : SWAROOP AUR SAMVEDNA
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- HANS KE VIMARSH (2VOL. SET)
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- KAANTE KE BAAT-6 : STHAGIT YATRAEN
- KAANTE KE BAAT-8 : KHAND KHAND PAKHAND
- KAANTE KE BAAT-10 : PRET MUKTI
- KAANTE KE BAAT-2 ANPADH BANAYE RAKHNE KEE SAZISH
- KAANTE KE BAAT-7 : ANDHERON SE UTHATI GUHAAR
- KAANTE KE BAAT-11 : SANSKRITIK MORCHABANDI KA ITIHAS
- KAANTE KE BAAT-12 : MEIN HANS NAHIN PADATA
- EK THAA SHAILENDRA
- VE DEVTA NAHIN HEIN
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- KAANTE KI BAAT-1 : NA LIKHANE KA KARAN
- KAANTE KI BAAT-3 : GULAMI KA ANAND AUR SWATANTRTA KE KHATARE
- KAANTE KI BAAT-4 : AAGE RASTA BAND HAI
- KAANTE KI BAAT-5 : KHAMOSH CHINTAN CHALOO AAHE
- KAANTE KE BAAT-9 : SHABD KA BHAVISHYA
- Kaante Ki Baat -12 : Mein Hans Nahin Padata
- Upanyas : Swaroop Aur Samvedana
- Upanyas : Swaroop Aur Samvedna
- Kante Ki Baat - 1 Na Likhne Ka Karan
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