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भारत के पहले स्वाधीनता संग्राम को डेढ़ सौ वर्ष हो चुके हैं, लेकिन उसने जो हलचल पैदा की थी वह अब भी शान्त नहीं हुई है, बल्कि जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, उसके विभिन्न पहलुओं का उद्घाटन और उन पर विचार-विमर्श होता चला जा रहा है; इतिहासकारों ने नयी खोजें की हैं और पुरानी खोजों पर नयी दृष्टि से सोचा-विचारा है। चन्द्रशेखर पाठक की यह पुस्तक भी 1857 के विप्लव पर उल्लेखनीय सामग्री पाठकों के सामने पेश करती है और इस स्वाधीनता संग्राम पर एक विहंगम दृष्टि डालती है। पुस्तक की एक विशेषता यह भी है कि वह इन प्रश्नों को भी उठाती है कि ग़दर के समय भारत की हालत क्या थी, औपनिवेशिक ब्रिटिश हुकूमत ने भूमि-सुधार के नाम पर जनता को कैसी बेड़ियों में जकड़ दिया था और देशी राजों-रजवाड़ों के प्रति अंग्रेज हुक्कामों का रवैया क्या था। इसके साथ-साथ यह पुस्तक दिल्ली से लेकर बंगाल और पंजाब से लेकर मध्यप्रदेश के भू-भाग में विप्लव के घटनाक्रम की समीक्षा करती है।
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PANDIT CHANDRASHEKHAR PATHAK

Books by PANDIT CHANDRASHEKHAR PATHAK
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