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भारत के ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी अभियान की नियमित शुरुआत किताबी इतिहासकारों ने 1857 से मानी है और उसे भी राजाओं-नवाबों के निजी असन्तोष और अंग्रेजी फ़ौज में तैनात देसी सिपाहियों की धार्मिक भावना में सीमित कर दिया गया है। बाद में गैर-सांस्थनिक इतिहासकारों ने जहाँ 1857 की देशव्यापी घटनाओं की विधिवत् पड़ताल करके 1857 के जन-विद्रोही चरित्र को उभारा, वहीं पूर्वापर काल के उन बहुत-सारे छोटे-मोटे महाभारतों का पता भी लगाया, जिनके नायक राजे-नवाब या पेशवेर सैनिक नहीं, बल्कि भीतरी ग्राम्यांचलों के सीधे-साफ किसान थे। इन किसान-विद्रोहों की शुरुआत 1857 से बहुत पहले सन् 1767-68 में ही त्रिपुरा के शमशेर गाजी विद्रोह से हो गयी थी, जिसे ‘भारत का मुक्ति संग्राम’ के लेखक अयोध्या सिंह ने ‘किसानों का संगठित विद्रोह’ कहा है।
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L. NATRAJAN

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