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सिम्मड़ सफेद
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सिम्मड़ गाँव-गँवई की बोली से लिया गया शब्द है। वैसे सिमर, सेमल या शाल्मली सब एक ही शब्द का पर्याय है और यह उस वृक्ष को संकेत करता है जिसका फूल तो लाल होता है, किन्तु फली से सफ़ेद रुई निकलती है। कथाकार का अभिप्राय शायद उस पेड़ के भेद गो कि इस निगूढ़ रहस्य से है, जिसकी मूल संवेदना से कथा-संग्रह की पहली कहानी का खास पात्र संपृक्त है। एक भावनात्मक लगाव जैसा हो गया है उसे उस दरख्त से, जो बार-बार उसे अपनी ओर खींचने को बाध्य करता है। हलका-सा, पुस्तक के शीर्षक और पहली कहानी के टाइटिल पर अटकने के बाद वरक पलटता गया और शेष कहानियों से रू-ब-रू होता गया। यकीनन ये छोटी-छोटी कहानियाँ जनपदों के तटीय प्रदेशों, गाँव-कसबों की तपती-नरम ज़िन्दगी की शिद्दतों को गहराई से छूने जैसी प्रतीत हुई। ठूह कशिश के साथ उठता गिरता, पर जहाँ से बनता उसी में विलीन नहीं होता। कभी सतह की यथार्थता को तोड़ जगह बनाता, तो कभी कल्पना के गह्वर में गुम हो जाता। आज के संवेगों, संवेदनाओं के दंश को गहराई से कुछ कहानियों में समेटने की कोशिश की गयी है।
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RATNESHWAR

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