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‘ईश्वर मर गया है’ नीत्शे ने कहा था। यह बात सही है। ईश्वर का स्मरण करके हम वह नैतिकता पैदा नहीं कर सकते। किसी संगठित धर्म में रहकर हम अपने में वह नैतिकता पैदा नहीं कर सकते। वह जो शक्तिशाली स्रोत बना हुआ था-वह अब उतना शक्तिशाली नहीं है। उसका आखिरी व्यक्ति गाँधी था। गाँधी जी हमेशा ईश्वर का जिक्र करते थे। जब कहने लगे कि सत्य ही ईश्वर है और गरीबों के लिए तो रोटी की शक्ल में ही ईश्वर आता है, तो ईश्वर के प्रति अद्वैतिक निष्ठा खत्म हो जाती है। तो ईश्वर कमजोर हो गया है। उसको लेकर ऐसी मिथक नहीं बन सकती जो हमें पकड़कर रखे और हमारे नैतिक व्यवहार को संचालित करे।
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