Details
”शानदार था भूत, भविष्यत् भी महान् है/अगर सँभालें आप उसे जो वर्तमान है।“-राष्ट्रीय दौर के अग्रणी कवि गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ की इन पंक्तियों में ‘वर्तमान’ पर विशेष जोर है। वस्तुतः वर्तमान ही वह बिन्दु है, जहाँ से अपने अर्जित अतीत और लक्ष्योन्मुख भविष्य को साधे रहा जा सकता है। लेकिन हमारे वर्तमान में एक बग़ल आज़ादी की आधी सदी दबी-ठिठकी खड़ी है और दूसरी तरफ ‘इट्ज़ फ़न-एन-फूड विलेज’ जैसी जयघोषणाएँ करती बहुराष्ट्रीय निगमों की उपभोक्ता संस्कृति उमड़-उफन रही है। देश के जिन किशोरों और तरुणों को आधी सदी की आजादी से आगे पूरी सदी की आजादी, बल्कि युग-युगों की आजादी तक की मंजिल तय करनी है, वे आत्मघाती नशीली धुनों पर थिरक रहे हैं और समूचा देश-समाज केबल और चैनलों की गिरफ़्त में छटपटा रहा है। ऐसे ही अघोषित अफीम-युद्ध जैसे संक्रमण काल में अपने इतिहास के निकट जाने और उससे सीखने की जरूरत होती है। ‘आजादी के दस्तावेज़’ नामक महत्त्वाकांक्षी ग्रन्थ-प्रस्तुति को इसी ज़रूरत से जोड़कर देखा जाना चाहिए।
Additional Information
No Additional Information Available
About the writer
ADHYAPAK ZAHOOR BAKHSH

Books by ADHYAPAK ZAHOOR BAKHSH
Customer Reviews
- No review available. Add your review. You can be the first.