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इस पुस्तक में मुग़लों के समक्ष जो स्थायी समस्याएँ थीं-राज्य और धर्म के सम्बन्ध; दखिन में स्थित राज्यों के साथ सम्बन्धों की समस्या जिसके कारण सल्तनत और इसके पूर्व कई उत्तरी साम्राज्य विनाश के गर्त में पड़ गये थे; और राजपूत राज्यों के साथ सम्बन्धों को स्थायित्व प्रदान करने और उनके समान स्थानीय राजकीय तत्वों को केन्द्रीय शासन व्यवस्था में शामिल करने की समस्या पर विवेचना की गयी है। इन प्रक्रियाओं के साथ, औरंगज़ेब की नीतियों तथा उनके परिणामों का पुनर्मूल्यांकन किया गया है-”उसकी खामियों के ऊपर पर्दा डाले या उसकी उपलब्धियों को नकारे बिना।“ यह लेख बहुत से विविध खोज-ग्रन्थों में छप चुके हैं, किन्तु अधिकांश अब प्रायः अप्राप्य हैं। इस पुस्तक के लिए कई नये लेख भी सम्मिलित किये गये हैं।
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