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‘बेचारे अंग्रेजों की विपदा व उनके पत्र’ गदरकालीन दिल्ली के विशेषज्ञ मरहूम ख़्वाजा हसन निज़ामी की एक और दस्तावेजी महत्त्व की कृति है, जिससे भारत के आधुनिकता के कई अव्यक्त पक्ष रौशन होते हैं। 11 मई 1857 अर्वाचीन भारत के इतिहास का वह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण दिन है, जब भारत की मुक्तिकामी जनता ने, सारे आपसी वैर-भाव भुलाकर, उन महाबली अंग्रेज हुक्मरानों को धूल चटाई थी, जिनकी हुकूमत में कहा जाता है कि सूरज कभी अस्त होने की गुस्ताखी नहीं करता था। निस्सन्देह 1857 का महाविप्लव, अपने ऐतिहासिक कारणों से, सफल नहीं हो पाया, लेकिन यह भी सच है कि भारत ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दो सौ सालों के दौरान कम्पनी बहादुर इतने बेचारे और कभी नहीं दिखे। 11 मई से 21 सितम्बर 1857 तक की तीन-सवा तीन महीने की अवधि, खासकर फ़सील के भीतर बसे शहर दिल्ली के, अंग्रेजों के लिए मौत से भी बदतर विपत्तियाँ लेकर आयी, जिनका आँखों देखा रोमांचक विवरण इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।
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KHWAZA HASAN NIZAMI

Books by KHWAZA HASAN NIZAMI
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