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डॉ. रज़ी अहमद की भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास पर नये सिरे से रोशनी डालती पुस्तक 'भारतीय उपमहाद्वीप की त्रासदी : सत्ता, साम्प्रदायिकता और विभाजन' गाँधीवादी आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्तों की संवेदनशीलता और हिन्दुस्तान के इतिहास और वर्तमान राजनीति पर उसके प्रभाव, इन विषयों पर डॉ. रज़ी अहमद के लिए क़लम उठाना चुनौतीपूर्णं रहा। घटनाओं को ऐतिहासिक वास्तविकताओं की रोशनी में निष्पक्षता से देखने की कोशिश है।
Additional Information
1857 के विद्रोह को सख़्ती से कुचल देने के बाद अंग्रेज़ों ने फ़ोर्टविलियम कॉलेज की सोची-समझी मेकाले-रणनीति के तहत बौद्धिक अस्त्र को अपनाया और यहाँ के लोगों की मानसिकता को बदलने के बहुआयामी अभियान चलाये और कुछ दिनों बाद ही वह अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब हुए। फ़ोर्टविलियम स्कूल के शिक्षित, दीक्षित और प्रोत्साहन प्राप्त लेखकों और इतिहासकारों ने अंग्रेज़ों की नपी-तुली नीतियों के तहत ऐसे काल्पनिक तथ्यों को बढ़ा-चढ़ा कर प्रसारित-प्रचारित किया - जो ज़्यादातर तथ्यहीन थे। समय बीतने के साथ जो मानसिकता विकसित हुई, उस माहौल में ‘व्हाइट मेन्स बर्डन’ की साज़िशी नीति सफ़ल हो गयी। उन लेखकों और इतिहासकारों ने जो भ्रमित करते तथ्य परोसे, उनको सही मान लेने की वजह से हिंदुस्तानियों की दो महत्त्व्पूर्ण इकाइयों के बीच कटुता की खाई बढ़ती गयी। हिंदुस्तान पर क़बीलाई हमलों का सिलसिला बहुत लंबा रहा है। उसी क्रम में मुसलमानों के हमले भी हुए। उनकी कुछ ज़्यादतियाँ भी अवश्य रही होंगी, क्योंकि विश्व इतिहास का मध्यकालीन युग उसके लिए विख्यात है। उन हमलों की दास्तानों को प्राथमिकता देते हुए बुरी नीयत से खूब मिर्च-मसाला लगाकर पेश किया गया, जिसका नतीजा इस महाद्वीप के लिए अच्छा सिद्ध नहीं हुआ।
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DR. RAZI AHMAD

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