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हिन्दी अध्येताओं के लिए इस संकलन में 2003 से 2012 तक के संवाद और परिसंवाद संकलित किये गये हैं। प्रस्तुत पुस्तक का नाम ‘संवाद-परिसंवाद’ इसलिए है क्योंकि इसमें संवाद के अन्तर्गत विभिन्न व्यक्तियों से लेखक की सीधी बातचीत है, ब्रजनन्दन किशोर के साथ पिछले पचास वर्षों में कविता की बदलती संस्कृति पर, रमेश उपाध्याय के साथ भूमंडलीय भाषा व सांस्कृतिक साम्राज्यवाद को लेकर, संजीव ठाकुर के साथ समाज से निकलते असामाजिक साहित्य पर, आशुतोष कुमार के साथ स्त्री की अस्मिता को लेकर, महेश दर्पण के साथ प्रौढ़ मनुष्यता की रचना को लेकर, रमण सिन्हा के साथ रामचरितमानस की लोकप्रियता को लेकर, देवेंद्र चौबे के साथ आधुनिकता की बुनियाद पर, स्त्रीकाल से मनुष्य की स्वतन्त्रता पर, अल्पना त्रिपाठी के साथ साहित्य, संस्कृति और समाज को लेकर, अनूप कुमार तिवारी के साथ लेखक और प्रतिबद्धता को लेकर, अरविन्द सिंह तेजवात के साथ कला और मनोरंजन को लेकर आदि। लेकिन परिसंवाद में अनेक अन्यों के साथ कुछ प्रश्नों के उत्तर हैं। मैनेजर पाण्डेय की बातचीत या संवाद की दो पुस्तकें ‘मेरे साक्षात्कार’ और ‘मैं भी मुँह में जबान रखता हूँ’ छप चुकी हैं। यह संवाद की तीसरी पुस्तक है। आशा है हिन्दी पाठकों के ज्ञानार्जन में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी।
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MANAGER PANDEY

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