Details
हिन्दी में उपन्यास का जितना और जैसा विकास हुआ है उतना और वैसा विकास उपन्यास की आलोचना का नहीं हुआ है। वैसे हिन्दी में उपन्यास की आलोचना का इतिहास लगभग उतना ही पुराना है जितना उपन्यास लेखन का। हिन्दी में आजकल उपन्यास की आलोचना केवल पुस्तक समीक्षा बन गयी है। यह उपन्यास की आलोचना की पुस्तक है। इसमें तीन खण्ड हैं। पहले खण्ड में उपन्यास का सिद्धान्त है और इतिहास भी। इसके आधार लेख में यह मान्यता है कि उपन्यास का जन्म लोकतन्त्र के साथ हुआ है। लोकतन्त्र उपन्यास का पोषक है और उपन्यास लोकतन्त्र का। यही नहीं उपन्यास का स्वभाव भी लोकतान्त्रिक है। इसके साथ ही इसमें उपन्यास के समाजशास्त्र का स्वरूप भी स्पष्ट किया गया है। पुस्तक के दूसरे खण्ड में प्रेमचन्द के कथा-साहित्य पर छह निबन्ध हैं जिनमें उनके उपन्यासों और कहानियों को रचना सन्दर्भों के साथ समझने की कोशिश है। तीसरे खण्ड में जैनेन्द्र के उपन्यास ‘सुनीता’, नागार्जुन के ‘रतिनाथ की चाची’, रणेन्द्र के ‘ग्लोबल गाँव के देवता’, साद अजीमाबादी के ‘पीर अली’, संजीव के ‘रह गयी दिशाएँ इसी पार’, और मदन मोहन के ‘जहाँ एक जंगल था’ की संवेदना और शिल्प का विश्लेषण तथा मूल्यांकन है। उम्मीद है कि जो पाठक आलोचना में सिद्धान्त और व्यवहार की एकता के पक्षधर हैं उन्हें यह किताब पसन्द आएगी।
Additional Information
No Additional Information Available
About the writer
MANAGER PANDEY

Books by MANAGER PANDEY
- Bhakti Andolan Aur Surdas Ka Kavya (Hard Cover)
- ALOCHANA MEIN SAHAMATI-ASAHAMATI
- Bharitya Samaj Mein Pratirodh Ki Parampara
- HINDI KAVITA KA ATEET AUR VARTMAAN
- SAMVAD-PARISAMVAD
- UPANYAS AUR LOKTANTRA
- Sankat Ke Bavajood
- SAHITYA AUR ITIHAS DRISHTI
- Bhakti Andolan Aur Surdas Ka Kavya (Paper Back)
- Sahitya Aur Itihas Drishti
- Batkahi
- Shabd Aur Sadhana
- Shabd Aur Sadhana
- Shabd Aur Sadhana
- Anbhai Sancha
Customer Reviews
- No review available. Add your review. You can be the first.