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गाब्रिएल गार्सिया मार्केज़ के जीवन-लेखन पर किताब क्यों? कहते हैं कि बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में संसार-भर के साहित्य को जितना कोलंबिया के एक तटीय शहर में पैदा हुए इस लेखक ने प्रभावित किया है उतना शायद किसी और लेखक ने नहीं। उनके जीवनीकार गेराल्ड मार्टिन ने सही लिखा है कि बीसवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध अगर जेम्स ज्वायस, मार्सेल प्रूस्त, फ्रांज काफ्का, विलियम फॉकनर, वर्जीनिया वुल्फ, सैमुएल बैकेट जैसे लेखकों के प्रयोगों के लिए याद किया जाएगा तो उत्तरार्द्ध मार्केज़ के जादुई लेखन के लिए। आलोचक इसको लेकर एकमत हैं कि यूरोपीय यथार्थवाद में तीसरी दुनिया के देशों के पारम्परिक विश्वासों की ‘मिक्सिंग’ की जो लेखन-शैली इन्होंने विकसित की उसका प्रभाव युगान्तकारी रहा, जादुई रहा। 1967 में प्रकाशित उनके उपन्यास ‘वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलीट्यूड’ को आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकता के सीमान्त के उपन्यास की तरह पढ़ा जाता है। एक तरह से तर्काधारित आधुनिकता के अन्त के घोषणापत्र की तरह। उनके जीवनीकार गेराल्ड मार्टिन ने लिखा है कि 1967 से 2000 के दौरान यह उपन्यास लगभग दुनिया के हर देश और हर संस्कृति में न केवल पढ़ा गया है, सराहा भी गया है। उन्होंने लिखा है कि जिस तरह विभिन्न संस्कृतियों द्वारा इसको स्वीकृति मिली है उसके आधार पर कहा जा सकता है कि वास्तविक अर्थों में यह संसार का पहला ‘ग्लोबल’ उपन्यास है। यह कहना बेमानी है कि ‘वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ सॉलीट्यूड’ संसार का सबसे अधिक अनूदित और पढ़ा गया उपन्यास है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि लेखक के रूप में उनकी अपार ख्याति का यह एकमात्र कारण है। उनके लिखे एक-एक शब्द को अनमोल मानने वाले पाठकीय अतिरेकों को अगर छोड़ दें तो भी आलोचकों का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि मार्केज़ ने कम से कम चार ऐसे उपन्यास लिखे हैं जो ‘मास्टरपीस’ कहे जा सकते हैं। जिनमें से तीन तो उन्होंने 1982 में नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद लिखे। बहरहाल, अनेक अर्थों में मार्केज़ को एक लेखकीय परिघटना की तरह देखा जाता है। गम्भीर लेखकीय प्रयोगों वाले, गहरे वैचारिक सरोकारों वाले इस लेखक की लोकप्रियता चार्ल्स डिकेंस, विक्टर ह्यूगो या हेमिंग्वे जैसे लेखकों की तरह है जिनकी किताबें लाखों-करोड़ों की संख्या में बिकती हैं। लातीनी अमेरिकी देशों में उनकी लोकप्रियता कई अर्थों में फुटबॉल खिलाड़ियों की लोकप्रियता को भी मात देनेवाली लगती है। कहते हैं कि इन देशों में उनका निकनेम गाबो उसी तरह से लोकप्रियता का पर्याय बन चुका है जिस तरह पेले या माराडोना जैसे प्रख्यात फुटबॉलरों के नाम। उनकी किताबों के बारे में चर्चा करना आज भी फैशन की तरह है। बहरहाल, गम्भीर एवं लोकप्रिय लेखक के सीमान्त को मिटा देने वाले इस लेखक के जीवन और लेखन पर एकाग्र यह पुस्तक - जिसमें उनकी जादुई यथार्थ की शैली तथा लगभग उनका अविश्वसनीय जीवन मिलकर एक हो गये हैं। बेहद पठनीय भाषा में एक बेजोड़ पठनीय लेखक के ऊपर किताब।
Additional Information
संसार-भर के साहित्य को प्रभावित करने वाले कोलंबिया के अपार ख्याति प्राप्त नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लेखक गाब्रिएल गार्सिया मार्केज़ के जीवन पर आधारित सुप्रसिद्ध लेखक प्रभात रंजन की नयी रचना ‘मार्केज़ : यथार्थ का जादूगर’ मार्केज़ का जीवन लेखन है। एक लेखकीय परिघटना की भांति देखे जाने वाले मार्केज़ की लोकप्रियता के सामने मशहूर पॉपस्टार शकीरा की लोकप्रियता भी फीकी पड़ जाए। इस बेमिसाल लोकप्रियता ने न सिर्फ साहित्य जगत बल्कि लोगों के दिलों में भी राज किया है। उनके लेखन पर चर्चा करना आज भी नया है और आगे भी नया रहेगा। मार्केज़ पर आधारित, सम्बन्धित और उनकी सभी किताबों व लेखनों से गुज़रकर यथार्थ के जादूगर के जादू को इस पुस्तक में संजोया गया है। यह किताब बेहद पाठनीय भाषा में एक बेजोड़ पाठनीय लेखक की जीवन-शैली के गठजोड़ का उम्दा मेल है।
About the writer
PRABHAT RANJAN

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