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फिर मुझे 'राहगुज़र याद आया'
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नवाबी शहर रामपुर पर केन्द्रित यह स्मृति आख्यान समष्टि से व्यष्टि तक की सुदीर्घ यात्रा तय करता हुआ विगत और वर्तमान की आवाजाही का जीवन्त दस्तावेज बनता जाता है। सामूहिकता बनाम निजता एवं पुरातन बनाम नवीन के द्वन्द्व से गुंथी कथा में ऐतिहासिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ विभिन्न सम्प्रदायों के बीच गहराई से पैठे सौहार्द को पूरी आत्मीयता से उकेरा गया है। एक छोटे शहर के जरिए तत्कालीन समय, समाज, सभ्यता, संस्कृति और जीवन मूल्यों से जुड़े बारीक ब्योरों के साथ पात्रों के बीच का आत्मीय संलाप व पूरी तल्लीनता से उकेरे रिश्तों के शब्द चित्र देखते ही बनते हैं। आज के आत्मकेन्द्रित और व्यक्तिवादी परिवेश में यह स्मृति आख्यान पाठकों की स्मृति में दस्तक देते हुए संक्रमणशील समय को पूरे पैनेपन से उभारता है। कभी असगर अली जैसे नेक पात्र के जरिए आम आदमी के भीतर गहराई तक पैठे इनसानियत के जज्बे को जिन्दा किया गया है तो कभी एक स्वप्नदर्शी किशोर से परिपक्व होने तक की लम्बी अवधि पार करती कथा समूचे उत्तरभारतीय जनजीवन का केन्द्रक बन कर विगत और वर्तमान की जुगाली करने लगती है। स्मृति संजाल से गुंथी कथा पूरी रोचकता, हार्दिकता व गजब की पठनीयता से भरपूर है जिसके सम्मोहक कथारस की जादुई गिरफ्त में पाठक जकड़ता जाता है।
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SHAILENDRA SAGAR

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