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केदारनाथ अग्रवाल जिस ग्रामीण परिवेश में पैदा हुए थे, वह अन्धविश्वासों-जड़ताओं एवं सामन्ती प्रभावों से बँधा, दबा-कुचला समाज था। उनके चारों ओर सामन्ती दाँव-पेंचों से शोषित, तबाह किसान और मजदूर थे। इन सबसे जुड़ कर इनका व्यक्तित्व एक खास तेवर से बन कर तैयार हुआ था। जहाँ एक तरफ यह अपने आस-पास के समाज के वर्ग चरित्रा को समझने में लगे थे, वहीं यह दूसरी तरफ अपनी धरती की रम्यता, हवा-धूप, नदी-पहाड़, चिड़ियों एवं फूलों के बीच हँसते, बतियाते, खिलखिलाते एवं उल्लास से झूमते दिखाई देते हैं। केदार का चिन्तनशील रचनाकार का मन आगे जिस तरफ बढ़ा, वह वह परिवेश था, जहाँ वह पैदा हुए थे। उनके सामने उस समाज का यथार्थ था और दूसरी तरफ वह उस धरती के उल्लसित ताजगी से भरे सौन्दर्य को, उसके ओज को लेकर आगे बढ़े और शोषित, मेहनतकश जन के पक्ष में खड़े होकर बेलाग कविता में हर जगह बोलते दिखाई देते हैं। जो कहीं-कहीं सीधी सपाट लगती हुई भी कृत्रिमता से कोसों दूर होने के कारण अपने आप में पर्याप्त है। ‘‘इकला चाँद/असंख्यों तारे/नील गगन के/खुले किवाड़े/कोई हमको/कहीं पुकारे/हम आयेंगे/बाँह पसारे।’’ केदारनाथ अग्रवाल की कविता का सौन्दर्य उनकी कविता के शिल्प का सौन्दर्य है, जो उन्होंने सौन्दर्य के स्थापत्य से प्राप्त किया है। इस सौन्दर्य को उन्होंने अनेक भावों की भंगिमाओं से व्यक्त किया है, जैसे हवा-धूप, फूल और नदी का सौन्दर्य, उनकी हर कविता में नये सौन्दर्य के साथ आया है, यानी उनकी हर कविता, नये सौन्दर्य की कविता है। उन्होंने प्रकृति को चित्रा की तरह देखा है किन्तु कविता में उसके निरूपण में जो क्रिएशन है, वह कला के साथ है, जिसमें शब्द और रंग का सौन्दर्य है, हवा की गति का सौन्दर्य है, ध्वनियों की धारा का सौन्दर्य है। आम आदमी के आन बान, ठसक और तेवर का सौन्दर्य, जो अपने विशिष्टपन के साथ कविता में उपस्थित है मानवीय कर्म से जुड़ते हुए, अपने पौरुषीय स्वर के साथ, जिसके आवेग की कौंध गहरा प्रभाव छोड़ जाती है। केदार की मर्मस्पर्शी संवेदना, काव्य के मर्म के अनुरूप शब्दों की लय, बिम्ब और प्रतीक अपना बेजोड़ असर पैदा किये बगैर नहीं रहते। केदार जिस परिवेश के हैं, वहाँ की प्रकृति, सामान्य जन की कोमल और कठोर प्रकृति को उन्होंने अपनी कविता में उकेर कर नयी पहचान दी है। उनके श्रम को अन्यतम महत्त्व दिया है। इस प्रक्रिया में इनकी कविता के रचाव का विशेष तरह का खुरदुरापन पाठकों का ध्यान उन्हें अपनी तरफ रखकर खींचता है जो अति महत्त्व का है। -नरेन्द्र पुण्डरीक
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KEDARNATH AGARWAL

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