Details
अपने जज़्बातो-अहसासात और अपनी कल्पनाओं को मनुष्य आदिकाल के भिन्न-भिन्न माध्यमों द्वारा व्यक्त करता आया है। उसने पत्थरों को तराशा, कूची और रंगों से अपनी भावनाएँ कैनवस पर उतारीं, शब्दों को लड़ी में पिरोकर अपने उद्गार व्यक्त किए और कभी सुर-ताल से एकाकार हुआ। भिन्न-भिन्न भौगोलिक परिस्थितियों के कारण संस्कृतियाँ भी भिन्न रहीं। लेकिन विज्ञान की उपलब्धियों और संचार माध्यमों के कारण संस्कृतियों, कलाओं और विचारों का आदान-प्रदान भी हुआ जिसके कारण आज जहाँ मनुष्य की सोच और व्यवहार का दायरा बढ़ा है, वहीं तर्क और भावना का द्वन्द्वभी बढ़ा है। चेतन का जड़ हो जाना और जड़ का चेतन हो जाना (अहल्या) भावनाओं की तार्किक अभिव्यक्ति है, या कहें तर्क की भावनात्मक परिणति। शब्दों का बोधगम्य, सुरुचिपूर्ण, लयात्मक विन्यास ही काव्य है। मुनव्वर राना के शब्द अपने विन्यास द्वारा आकार बनाते हैं और स्वयं का लोप भी करते हैं। जैसे किसी चित्रकार द्वारा बनाये गये चित्रों में रंगों का लोप हो जाता है - रंगों का समुच्य कोई आकृति ग्रहण कर लेता है। मुनव्वर राना की शायरी में जीवन-जगत की अनुभवजन्य संवेदनाओं की प्रस्तुति तो है ही, छोटी से छोटी घटनाओं के शब्द-चित्रों के साथ-साथ गहन से गहन दर्शन की शब्दाकृति भी है। मुनव्वर राना ने अपनी रचनाओं में अपने आन्तरिक और बाह्य दबावों और अन्तर्द्वन्द्वों को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करने का चमत्कार पैदा किया है।
Additional Information
No Additional Information Available
About the writer
MUNAWWAR RANA

Books by MUNAWWAR RANA
- MUHAJIRNAMA
- MAA
- GHAZAL GAON
- BADAN SARAI
- PIPAL CHHAON
- SUKHAN SARAI
- MOR PAON
- SAB USKE LIYE
- GHAR AKELA HO GAYA
- SHAHDABA
- BAGHAIR NAQSHE KA MAKAN
- DHALAN SE UTARTE HUE
- PHUNNAK TAAL
- SAFED JANGALI KABOOTAR
- SHAHDABA
- SUKHAN SARAI
- SAFED JANGLI KABOOTAR
- BAGHAIR NAQSHE KA MAKAN
- DHALAN SE UTARTE HUE
- PHUNNAK TAAL
- MAAN
- Meer Aa Ke Laut Gaya -1
- Meer Aa Ke Laut Gaya -1
- Rukhsat Karo Mujhe
Customer Reviews
- No review available. Add your review. You can be the first.