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नीतिकथाओं का प्रचलन इतना ही प्राचीन है जितना ‘श्रुति’ और ‘स्मृति’ का अस्तित्व। कह सकते हैं कि पूरी दुनिया में इनकी एक सुदृढ़ परम्परा रही है। फॉन्तैन इसी परम्परा से आते हैं। लेकिन उनकी नीतिपरक कविताएँ सिर्फ़ सामान्य गल्प का रूप न होकर अपने समय के राजनैतिक-सामाजिक परिदृश्य, दरबारी माहौल, दरबारियों की मूर्खताओं-क्षुद्रताओं, बुर्जुआ मूल्य और चापलूसी भरे पाखंड पर व्यग्य करने का हथियार बन जाती हैं। इससे भी आगे वह फ्रांस के उस समय के राजा लुई चौदहवें को उद्दंड सर्वेसर्वा यानी ‘कालिगुला’ के वंशज के रूप में चित्रित कर देते हैं। यही तो उनकी नीतिपरक कविताओं की शक्ति है जब वे अपने समय का दर्पण बनकर और भी अधिक प्रासंगिक हो जाती हैं। उनकी कविता के मुख्य पात्र पशु और पक्षी हैं। जिनमें सामाजिक वर्ग भेद का अक्स भी दिखाई देता है जैसे: पहली श्रेणी में शक्तिशाली जानवर आते हैं। यहीं दूसरी ओर वे जानवर भी हैं जो तेज़ दिमाग रखते हैं और धूर्तता की हद तक कार्यों को अंजाम देते हैं। जैसे - शेर, भेड़िया, लोमड़ी, बाज, चील, गिद्ध, बन्दर, बिल्ली आदि। - कमजोर और सताये हुए जानवर जैसे बकरी, भेड़, गधा, चूहा, मछली आदि दूसरी श्रेणी के पात्र हैं। - तीसरी श्रेणी में आने वाले पशु, हाथी, सर्प, चूहा, मेढक इत्यादि हैं। ये कभी ताकतवर दिखते हैं और कभी कमज़ोर भी पड़ सकते हैं। दरअसल इनकी वीरता सामने आने वाली परिस्थिति और इनसे टक्कर लेने वाले जानवरों के ऊपर निर्भर करती है। यहाँ पात्र के रूप में पशु-पक्षियों का उपयोग तो मात्र एक बहाना है। असली पात्र तो मानव है जो अपने ज़हरीले तंत्र, वर्ग विभेद और स्वयं की कमजोरियों के साथ कविता के केन्द्र में मौजूद है। कुल मिलाकर फॉन्तैन ने जहाँ अपने आपको राजशाही के कोप से सुरक्षित रखा, वहीं उन्होंने लेखक होने के अपने उत्तरदायित्व को भी पूरा किया। इस तरह उन्होंने शिक्षा देने के साथ-साथ तंज कसने के लिए ‘फेबल्स’ का माध्यम चुना। और आज भी ये ‘फेबल्स’ उतनी ही प्रासंगिक हैं।
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फॉन्तैन और उनकी नीतिपरक कविताएँ : फ्रेंच कवियों की श्रृंखला
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TRANS. : MADAN PAL SINGH

Books by TRANS. : MADAN PAL SINGH
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