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फ़िराक़ के जीवन-प्रसंग के रूपायन के शिल्प-विधान की उल्लेखनीय विशिष्टता है लेखक का सिद्ध संयम और विवेक जिसके चलते जीवन की यथार्थ तस्वीर व्यंजक भाषा में रची जा सकी है। यह संयम प्रतिभा की कसौटी है। रमेश चन्द्र द्विवेदी ने जिस गहरी श्लाघा के साथ फ़िराक़ के सौन्दर्य पक्ष को, असाधारण संवेदनशीलता और मनीषा को प्रभावी शैली में प्रस्तुत किया है, उसी अनासंग जागरूकता से फ़िराक़ के आचरण की कुरूपता को उजागर किया है। व्यक्तिगत निकटता लेखन की ईमानदारी को प्रभावित-बाधित नहीं करती। गुणवत्ता के बयान में न तनिक अतिरंजना और न यथार्थ का बलात् विरूपीकरण। सिद्ध अनुशासन से यह विरल संयम उपलब्ध होता है। रमेश चन्द्र द्विवेदी में अपने उपजीव्य से जुड़े मार्मिक प्रसंगों के चयन का विवेक भी बहुत पुष्ट है। कुछ बिन्दुओं से पूरी प्रामाणिक तस्वीर आँक देना सर्जनशीलता की ही सिद्धि है और दो अन्तरंग इकाइयों के बीच सदा डरावनी मुद्रा में खड़ी संवादहीनता की प्रेत-छाया में, संवेदना के स्तर पर, संवाद रच देना रमेश चन्द्र द्विवेदी के परिपक्व गद्य-शिल्प की उल्लेखनीय विशिष्टता है। द्रष्टव्य है, फ़िराक़ के अन्तरंग सहचर लेखक श्री द्विवेदी की वह विचक्षण जागरूकता और संवेदनशील वीक्षा, जो फ़िराक़ की जीवन-चर्या की उन छोटी-छोटी बातों को भी स्पर्श करती है, चाहे वे कुरूप हों या सुन्दर और जो फ़िराक़ और उनके निजी संसार को यथार्थ रूप में समग्रता के साथ उजागर करती हैं। ऊपर से अनियन्त्रित और एक अंश तक अश्लील तूफान भीतर से कितना कोमल, संवेदनशील और सर्जनशील था इसका सटीक रूप आँक पाना रमेश चन्द्र द्विवेदी के परिपक्व शिल्प की निस्सन्देह सर्वाधिक मूल्यवान उपलब्धि है।
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RAMESH CHANDRA DWIVEDI

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