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चम्पू कोई बयान नहीं देगा
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मेरे सामने आके बैठ जा, न गिला रहे न शिकन कोई। बैठ लेने में क्या हर्ज है! चचा के सवाल चुटीले। चम्पू भी। धीरे-धीरे हो गया एक साल में सयाना। किन चीजों पर कितना बोले, थोड़ी-सी समझ आई। एक बार तो ठान ही लिया कि कोई बयान ही नहीं। देगा। उसका कुछ तो असर हुआ। मौन भी कई बार संवाद में एक बड़ी भूमिका अदा करता है। लेकिन चचा मौन रहने दे तब न! जीवन-बगीची भी कहां चुप रहने देती है! चर्चा और चिंतन का पूरा एक साल। चारपाइयां बिछी हैं, बैठिए न!
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ASHOK CHAKRADHAR

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