Details
भारती जी की कविता ने पाँचवें दशक के आरम्भ में अपनी जो अनूठी पहचान बनायी, वह सदी पार कर आने तक ज्यों-की-त्यों ताज़ा तो बनी ही रही, दिनों-दिन और गहराती गयी। कथ्य की परिपक्वता और शैली के वैविध्य के साथ-साथ काव्य विषयों की परिधि जिस तरह विस्तृत होती गयी, वह सचमुच आश्चर्यजनक है। अलस्सुबह का मांसल, फिर भी स्वप्निल प्यार हो; या पुराने किले में समकालीन इतिहास की संकटपूर्ण विडम्बना, या मुँह-अँधेरे महक बिखराते हरसिंगार, या पकी उम्र का प्यार, या मुनादी में जनान्दोलन की ललकार-भारती जी की संवेदना-परिधि में सब एक विशिष्ट मार्मिकता से अभिव्यक्त होते हैं। कहीं भी छद्म बौद्धिकता नहीं, बड़बोले उपदेश नहीं, सिद्धान्त छाँटने का आडम्बर नहीं-सहज संवेदनशील अभिव्यक्ति, जो सीधे मर्म को छू जाये। वर्षों की आतुर प्रतीक्षा के बाद आने वाला उनका यह काव्य संकलन उनके विशाल पाठक वर्ग के लिए एक काव्योत्सव ही नहीं है, एक अतिरिक्त विशिष्ट अनुभूति भी है, जहाँ कवि की समस्त काव्य-क्षमताएँ अपने चरमोत्कर्ष पर हैं। पर वह चरमोत्कर्ष भी विराम नहीं क्योंकि है–सपना अभी भी...
Additional Information
No Additional Information Available
About the writer
Dharamvir Bharti

Books by Dharamvir Bharti
Customer Reviews
- No review available. Add your review. You can be the first.