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Translation by Teji Grover
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...तो फिर हम शीर्षक में आये शब्द 'जीवन' का क्या अर्थ लगायें ? जीवन न तो इन कहानियों में वर्णित घटनाओं का क्रम है, न ही रोज़मर्रा को सहने से उपजे वाक्यांशों का सिलसिला दर्शाती कोई और चीज़ (मिसाल के तौर पर, “जीवन कठिन है", “ऐसा ही है जीवन") ऐसा लगता है जैसे पाठक को इस बात का न्योता दिया जा रहा हो कि वह अपने जीवन पर मनन करते हुए यह पूछे, “(मेरा) जीवन क्या है?" और जिसका उत्तर न तो बतौर किसी परिभाषा के दिया जा सकता है और न ही जड़ उक्तियों की जोड़-तोड़ कर। इन कहानियों में मृत्यु जीवन की सीमा रेखा भी है और जीवन का दर्पण भी – उन लोगों की मृत्यु (या उसकी चेतना) जो आपके आस-पास हैं, या आपके सगे हैं। मृत्यु इन कहानियों में रचे-बसे जीवन का सन्दर्भ-बिन्दु है। वह उतनी ही उपस्थित और अपरिहार्य है जितनी कि ज़िन्दगी, लेकिन इन कहानियों के संसार में मृत्यु को लेकर नज़रिया भय और घृणा से लेकर मृत्यु की कामना और मृत्यु पर भरोसे तक फैला हुआ है, हालाँकि सभी कहानियाँ मृत्यु-केन्द्रित नहीं हैं। मैं नहीं जानता मैं इन कहानियों को जीवन के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति कहूँगा, लेकिन कुछ-कुछ ऐसा ही कहना चाहूँगा, इस कथन को चालू मुहावरे से बचाते हुए। कुल मिलाकर मैं कहना चाहूँगा कि नोरा इक्स्टिएना हमें अन्यत्व को देख पाने में सक्षम करती हैं - रोज़मर्रा की अजनबियत से बाहर और अपनी सम्पूर्ण सन्दरता में अन्यत्व को देख पाने में। हम देख सकते हैं कैसे अन्यत्व जीवन को आकार देता है या फिर ज़िन्दगियाँ कैसे अन्यत्व को बुनती-गुनती हैं। -टुम्स केन्सिस
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Nora Ikstena Translation by Teji Grover

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