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देवदासी या धार्मिक वेश्या एक पुनर्विचार
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इस अनुसंधान में 'धार्मिक वेश्यावृत्ति' शब्द का प्रयोग इस बात पर जोर डालने के लिए किया गया है कि हिन्दू-धर्म मन्दिर-स्त्री की यौन-अस्मिता को आदर्श के रूप में देखता रहा है। वास्तविकता यह है कि आज के प्रचलित शब्द 'देवदासी' का उपनिवेश-पूर्व अवधि में कहीं उल्लेख नहीं मिलता। प्राचीन और मध्यकाल की साहित्यिक और पुरालेखीय सामग्रियों में इन स्त्रियों के लिये सुले, सानी, भोगम और पात्रा जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ है। कन्नड़ और तेलुगु में इनका अर्थ वेश्या होता है। इन दोनों ही भाषा-क्षेत्रों में इस प्रथा की पुष्टि करने वाले आरम्भिक स्रोतों में ही हम इन शब्दों का प्रयोग देखते हैं। इस प्राक् या वास्तविक अस्मिता का खयाल रखते हुए ही 'धार्मिक वेश्यावृत्ति' शब्द का यहाँ प्रयोग किया जा रहा है, न कि 'देवदासी' शब्द का जो अकादमिक जगत में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। देवदासी शब्द धार्मिक वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियों की वास्तविक या मूल अस्मिता की पर्दापोशी करता है। औपनिवेशिक अवधि में ही संस्कृतनिष्ठ शब्द देवदासी के चलन ने ज़ोर पकड़ा। इसे उन बुद्धिजीवियों ने उछाला जो एक निर्णायक ऐतिहासिक घड़ी में अपने सचेत सुधारवादी कार्यक्रम के तहत मन्दिर की वेश्याओं की अस्मिता की पुनर्रचना में जुटे हुए थे। धार्मिक वेश्यावृत्ति उस धार्मिक मान्यता का दृष्टान्त है जो ‘सेक्स को । आध्यात्मिक मिलन और सम्भोग को मोक्ष का मार्ग' मानती है।
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Priyadarshini Vijayshri Translated by Vijay Kumar Jha

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