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रसखान रचनावली
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रसखान सच्चे अर्थ में मरजीवा कवि हैं, ऐसी बेखुदी के शिकार हो गये हैं कि वे रसखान भी नहीं रह पाते, वे सब-कुछ भूल जाते हैं पर वह भूल नहीं भूलते जो उनसे एक बार हो गयी है। वह भूल यह हुई कि वह श्रीकृष्ण से प्यार कर बैठे। जिस प्रकार वह गोपी प्यार करने की भूल कर बैठी जो तीर्थयात्रा की भीड़ में भटक गयी थी। धाय की बाँह छूट गयी भटकती हुई यशोदा के भीतर की तरफ चली गयी और वहाँ एकाएक श्रीकृष्ण की मुसकान पर उनको प्यार करने की भूल कर बैठी और सब तो भूल गयी, भटकना भूल गयी, पर श्रीकृष्ण से प्यार करने की भूल नहीं भूलती, न उनके पीछे रात-दिन का भटकाव भूलता है- तीरथ भीर में भूलि परी अलि छूट गयी नेक धाय की बाँही।/ हौं भटकी भटकी निकसी सु कुटुम्ब जसोमति की जिहि धाँहिं।/ देखत ही रसखान मनौ सु लग्यौ ही रखै कब को हियरा हीं।/ भाँति अनेकन भूली हुती उहि द्यौस की भूलनि भूलत नाहीं।।
About the writer
ED : DR. VIDYANIWAS MISHRA

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