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संचार माध्यम लेखन
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डिजिटल युग में फाइवर ऑपटिक्स द्वारा संचार संभव होने के साथ ही सैटलाइट रेडियो का आगमन हो चुका है। सामूहिक प्रेषणीयता के नए माध्यमों द्वारा शब्दों के उच्चरित रूप, भाव और विचार को सजीवता प्रदान हो रही है। मुद्रित लेख की 'प्राइमेसी ऑफ़ टेकस्ट' रेडियो में मूल पाठ के रचियता के साथ संपर्क करवा कर 'स्पोकन वर्ड' का नया साहित्य रच रही है। संप्रेषण का एक नया बहुआयामी दृश्य-माध्यम नए 'विजुअल-टेकस्ट' रचने लगा है। जिसमें वर्युअल-दृश्य, टी.वी. होस्ट की अदाकारी, अभिनेता की भाव भंगिमाएँ, स्पेकटकल, संगीत और आलेख मिलकर एक नई दृश्य-श्रव्य भाषा बनाते हैं। एक नए 'विजुअल-टेकस्ट' का निर्माण हो रहा है। ऑन-लाइन समाचारपत्र-पत्रिकाएँ प्रकट हो गई हैं। डीटीएच टेक्नोलॉजी एक नया दर्शक-वर्ग तैयार कर रही है। जनसंचार की परिभाषा बदलने लगी है। मीडिया का अचानक तीव्र विस्तार इसकी प्रविधि को समझने के लिए विवश कर रहा है। प्रस्तुत पुस्तक में जहाँ लेखन के स्वरूप, इतिहास, रेडियो नाटक-प्रविधि तथा टीवी नाटक तकनीक का विश्लेषण हुआ है वहीं साहित्यिक विद्याओं की दृश्य-श्रव्य रूपांतरण कला व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा प्रसारित समाचारों के संकलन संपादन और प्रस्तुतिकरण की प्रविधि के बारे में भी लिखा गया है। यह पुस्तक, जन संचार के विद्यार्थियों, मीडिया से जुड़े व्यक्तियों, रेडियो-टीवी नाट्यकला में रुचि रखने वाले संवेदनशील कलाकारों व सामान्य पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
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GORISHANKAR RAINA

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