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‘‘आज के वरिष्ठ हास्य-व्यंग्य लेखकों में रवीन्द्रनाथ त्यागी का लेखन अपने ढंग का है। उस पर पूर्ववर्ती तथा समकालीन लेखकों का कोई प्रभाव परिलक्षित नहीं होता। उन्होंने लगभग स्वतन्त्रा रूप में अपना लोकतन्त्रा विकसित किया है। उनकी कलात्मक अभिरुचियाँ परिष्कृत और साहित्य का अध्ययन गहन है। वह उनके लेखन में उसे सम्पन्न बनाते हुए बोझिल होने से बचाते हुए सहज रूप में प्रतिबिम्बित होता है। त्यागीजी में राजनीतिक तल्खी नहीं है, वहाँ सहज परिहास-बोध है और स्थितियों का विश्लेषण तथा कौतुकपूर्ण सूझ-बूझ है। कहना न होगा कि रवीन्द्रनाथ त्यागी का साहित्य सुशिक्षित व सुसंस्कृत व्यंग्य व परिहास का अद्वितीय नमूना है...। ’’ -श्रीलाल शुक्ल ‘‘मैं रवीन्द्रनाथ त्यागी को एक श्रेष्ठ कवि और श्रेष्ठ व्यंग्यकार स्वीकार करता हूँ। उनकी विशिष्टता का एक प्रमुख कारण है कि हमारे जो पुराने क्लासिकल हैं, उनमें उनकी गति है। वे सचमुच बहुत अच्छा लिखते हैं। ऐसा प्रवाहमय विट सम्पन्न गद्य मुझसे लिखते नहीं बनता...। ’’ -हरिशंकर परसाई ‘‘तलवार चलाते हैं, शरद जोशी के हाथ में गुलेल और रवीन्द्रनाथ त्यागी के पास शब्दों के नश्तर हैं, जिनसे वे महीन मार करते हैं। सूरदास में वात्सल्य-पदों की भाँति उनको बार-बार पढ़ने पर भी नयेपन का बोध होता है...’’ -मनोहरलाल ‘‘जिन लोगों ने व्यंग्य को स्वतन्त्रा प्रतिष्ठा देने-दिलाने की दिशा में काम किया है, उनमें रवीन्द्रनाथ त्यागी का अपना अलग रंग है। उनकी खास बात उनकी उन्मुक्तता और लालित्य है। हिन्दी में इस तरह बिना किसी प्रकट और प्रत्यक्ष उद्देश्य के (निष्प्रयोजन और अहेतुक नहीं) लेखन की परम्परा बहुत विकसित नहीं है। शब्दों और विचारों से खिलवाड़-कौतुक के स्तर पर लेखन हिन्दी में विरल है। त्यागी जी में वह ज़िन्दादिली और मस्ती या बेफिश्करी है कि उनके लेखन को उन्मुक्त लेखन का दर्जा आसानी से दिया जा सकता है। इसीलिए उनका नाम इस विधा में स्थायी महत्त्व का हो जाता है...’’ -धनंजय वर्मा
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Kamal Kishore Goyanka

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