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सांस्कृतिक पत्रकारिता : साक्षात्कार पर आधारित सन्नाटे में चमकती आवाज़ें
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अख़बारों में प्रतिदिन महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों और ख़बरों में रहने वाले सेलेब्रेटीज के साक्षात्कार पर आधारित खबरें छपती रहती हैं। इनमें से अधिकतर तो जाने-पहचाने क़िस्म के बयान होते हैं, कुछ माँगें या उपदेश होते हैं, कुछ विवादास्पद बयान होते हैं, कुछ पूर्व में दिये गये साक्षात्कारों का खंडन होता है। बहुत कम ख़बरें ऐसी होती हैं जो गम्भीर या लोकप्रिय विमर्श पैदा करती हैं। यदि किसी लेखक-कलाकार पर सरकारी या गैर-सरकारी हमला होता है, या उन्हें किसी पद पर बिठाया या हटाया जाता है या और भी कुछ ऐसा तात्कालिक घटता है तो ऐसे बयानों-साक्षात्कारों की बहुतायत देखी जाती है। आज अख़बार सतही साक्षात्कारों से भरे पड़े हैं। इसलिए अख़बारों में अच्छे साक्षात्कारों की माँग बनी हुई है। अवसर विशेष पर संक्षिप्त और तात्कालिक साक्षात्कारों की भी माँग होती है। लेकिन साक्षात्कार चूँकि द्विपक्षीय प्रक्रिया है इसलिए उसकी गुणवत्ता साक्षात्कार देने वाले और साक्षात्कार लेने वाले दोनों पर निर्भर करती है। ऐसा देखा गया है कि साक्षात्कार की गुणवत्ता अक्सर साक्षात्कार लेने वाले पत्रकार की क्षमता और कौशल पर निर्भर करती है। दुर्भाग्य से साहित्य और संस्कृति की दुनिया में हलचल मचाने वाले महत्त्वपूर्ण साक्षात्कार कम ही छपते हैं। ऐसे परिदृश्य में प्रस्तुत पुस्तक को एक अपवाद कहा जा सकता है। यहाँ समकालीन साहित्यिकसांस्कृतिक परिवेश के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षरों के आत्मीय साक्षात्कार संकलित किये गये हैं। ये साक्षात्कार अपनी मूल प्रकृति में जीवन्त संवाद की तरह हैं जिनमें साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति का संवादी व्यक्तित्व साफ़-साफ़ उभर कर सामने आया है। यहाँ साक्षात्कार को एक गम्भीर सांस्कृतिक कर्म मानते हुए उसके व्यावहारिक आशयों को उजागर करने की कोशिश की गयी है। इस प्रक्रिया में संकोच, झिझक और गोपन की बजाय मुखरता, स्पष्टता और बेबाकी को तरजीह दी गयी है जिसके कारण खुद यह किताब भी एक बोलती हुई किताब बन गयी है।
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Ajit Rai

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