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सतत खोजबीन और शोध से मुग़ल शहंशाह औरंगज़ेब आलमगीर का स्वच्छ, धवल, निष्कलुष, सहिष्णु, उदार तथा आदर्श व्यक्तित्व प्रकाश में आया है जिससे अंग्रेज़ एवं उनकी लीक के अनुगामी कतिपय भारतीय इतिहासकारों के लेखन का कमज़ोर पक्ष उजागर होता है। प्रशासनिक और सांसारिक कार्यों को औरंगज़ेब मज़हब तथा साम्प्रदायिकता से विलग रखता था। मज़हब को वह व्यक्तिपरक मानता था। अधिकांश मुग़ल बादशाह अपने तख़्त के इर्द-गिर्द ही मँडराते रहे, जबकि औरंगज़ेब बीमारी की हालत में भी प्रशासनिक सामंजस्य और एकता बनाये रखने के लिए दौड़ता रहा। वर्तमान सत्ताधारी अपनी निहित राजनीतिक स्वार्थपरता और लक्ष्य की परिपूर्ति के लिए धर्म को भुनाने से बाज नहीं आते। औरंगज़ेब की प्रशासनिक कार्यकुशलता और सूझबूझ इस बात का परिचायक है कि वह धर्मपरायण और धर्मनिरपेक्ष एक कुशल और सशक्त दूरदर्शी शासक था। केवल इतना ही नहीं अपितु वह समाज सुधारक और स्त्री-शिक्षा का प्रबल हिमायती था। आचरण की स्वच्छता और पवित्रता, प्रजावत्सलता, दयालुता और न्यायप्रियता में अटूट आस्था रखने वाला औरंगज़ेब साम्प्रदायिकता से परहेज़ रखता था। प्रशासनिक कार्यों और अपने आचार-विचार में वह पूर्ण पारदर्शिता बरतता था। साथ ही एक सुदक्ष बीनकार (वैणिक), बहुभाषाविद् और कुशल बन्दिशकार-वाग्येयकार होने के कारण नेकदिल इनसान था जो वर्तमान राजनेताओं और सत्ताधारियों के लिए प्रासंगिक एवं अनुकरणीय है। संयमी, सादगीपसन्द, विलासिता से परहेज़ रखने वाला मितव्ययी था। अपने बहुआयामी व्यक्तित्व के कारण विश्व के महान शासकों में उसकी गणना होती है। प्रस्तुत शोधग्रन्थ में शहंशाह औरंगज़ेब आलमगीर के बहुपक्षीय व्यक्तित्व की सांगोपांग विवेचना है।
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GAJENDRA NARAYAN SINGH

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