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गगन गिल का समूचा रचना-संसार धीरे-धीरे बुना गया एक ऐसा प्रशान्त संसार है जिसमें कई तरह के उत्तप्त विकल्प दीख तो पड़ते हैं लेकिन उनमें से किसी एक को चुना जा सकना सम्भव नहीं। उनकी कविताएँ जैसे अस्तित्व के अनिवार्य अन्तर्विरोधों के बीच एक खुले अवकाश में जीने के दुःख को चुपचाप बटोरती कविताएँ हैं। अस्तित्व के अध्यात्म को इस या उस दर्शन के बगैर अपनी करुण व्यंजनाओं में टटोलती यह कृति भारतीय कविता की उस परम्परा से नया सम्बन्ध रचती है जिसे समकालीनता के आतंक में बरसों से भूलने की कोशिश की जाती रही है। -राजेन्द्र मिश्र
Additional Information
गगन गिल के काव्य-मानस की बनावट इस कदर प्रगीतात्मक है या अनुभव ही इतना सांघातिक है कि कवि अनुभूति को कुछ दूरी से देखने की बजाय, उससे भर ही नहीं, उसमें घिर भी जाता है। अनुभूति की यह सघनता और तीव्रता जिद की दीवार भेद या थकान का रेतीला विस्तार लाँघकर जितना और जिस रूप में अनुभूति को बाहर सतह पर ला पाती है, उसी से कविता का रूपाकार बनता है। -ललित कार्तिकेय
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GAGAN GILL

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