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नीला चाँद
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नीला चाँद, नीला चाँद, नीला चाँद-ये ही हैं इधर बीच के सुप्रसिद्ध तीन उपन्यास। ऐसा ही कहा था उषा किरण खान ने। 'नीला चाँद' कालजयी कथाकार शिवप्रसाद सिंह का यशस्वी उपन्यास है-जिसे तीन प्रख्यात पुरस्कार-सम्मान मिले-1991 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार, 1992 में शारदा सम्मान और 1993 में व्यास सम्मान। 'नीला चाँद' के लिए 'व्यास सम्मान' की प्रशस्ति में ठीक ही कहा गया है कि शिवप्रसाद सिंह का अनुकरण नहीं किया जा सकता। वे एक साथ बेबाक ढंग से सुरूप और सौन्दर्य को, वीभत्स और विरूप को, भयानक और चमत्कारिक को साकार और जीवन्त करने की कला में दक्ष हैं। वे इतिहास के स्रोतों से लेकर पुरातात्विक उत्खनन से सीधा सम्पर्क रखते हैं। शिलालेखों को जाँच कर अपनी सामग्री ग्रहण करते हैं। 'नीला चाँद' मध्ययुगीन काशी का विस्तृत फलक है। प्रस्तत है 'नीला चाँद' उपन्यास का नया संस्करण। पर क्या ‘नीला चाँद' की सम्यक समीक्षा हो गयी? साहित्य अकादेमी से ज़्यादा पहुँचे न्यायाधीशगण शारदा सम्मान में और उससे भी एक कदम आगे पहुँचे व्यास सम्मान को देते समय, किन्तु नयी सहस्राब्दी की दहलीज़ पर पाँव रखने वालों को क्या 'नीला चाँद' का अन्तिम सन्देश पहुँचा दिया गया? रोटी का गोल टुकड़ा चाहिए-अवश्यमेव जीने के लिए, पर क्या पेट भरने पर ऐसा जीना मानव की अभीप्सा को पूरी तरह बाँध सकेगा? सर्वदा के लिए नहीं? रोटी के अलावा मानव का मन कुछ माँगेगा। कौन देगा वह सन्देश? कौन दिखायेगा अमावस्या की रात में उपेक्षित पड़े नीला चाँद को जो हर मनुष्य को सहज प्राप्त है ? सिर्फ़ 'नीला चाँद' जो न तो धर्मोपदेश है, न ही अख़बार का एक पन्ना। आइये फिर खोजें और क्या है इसमें...
About the writer
SHIV PRASAD SINGH

Customer Reviews
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Ashokkumar Dhumda
- The best novel I read in my life
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It was awesome novel, first time in my life I read at the age of 14 in my school library, and I read again and again until age of 18 until I leave school for further higher education, and from that time this historical novel put an impression on my mind, it's really great novel and I love it
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