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मुक्तिप्रसंग
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आपको उपदेश नहीं देना चाहता-किसी को भी किसी भी अवस्था में उपदेश देना नहीं चाहता-पर यह अनुभव कर रहा हूँ कि आपकी स्थिति में शायद ऐसा भी कुछ है, जो अपने-आप में स्वास्थ्य की प्रेरणा दे, और वह जो है उसे उभार कर आपके सामने ला सकूँ तो समयूँगा कि उपचार में कुछ योग दे रहा हूँ। स्वीकार के बाद मृत्यु को हटाकर एक ओर रख दिया जा सकता है और जिया जा सकता है, यही मैं आपसे कहना चाहता हूँ। यह स्वीकार हराता नहीं, जीने का बल देता है। इसे आप दंभ न समझें तो कहूँ कि मैं कुछ-कुछ अनुभव से भी यह जानता हूँ; नहीं तो अब तक मैं भी मर चुका होता। मैं नहीं चाहता कि आप अपने मन को टूटने दें; वैसी कोई लाचारी नहीं मानता। -वात्स्यायन
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RAJKAMAL CHOUDHARY

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