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बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन (18721901)
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इतिहास की मुख्य और प्रचलित धारा में हमेशा हाशिये पर रखा जाता रहा है अंग्रेजों के विरुद्ध होने वाला आदिवासियों और जनजातियों का संग्राम। अपने देश और अपने धरती पर अपने अधिकारों और सम्प्रभुता का यह महान संग्राम महज राजनीतिक सत्ताओं के लिए होने वाले संघर्षों से बिल्कुल भिन्न रहा है। कई रूपों में यह संघर्ष आज भी जारी है। इन सब में एक महत्त्वपूर्ण संग्राम था, बिरसा मुंडा के नेतृत्व में चलने वाला 'उलगुलान' जिसने अनेक लोकगाथाओं और किंवदंतियों को जन्म दिया। यह एक ऐसा आन्दोलन था। जिसमें राजनीति, समाज और संस्कृति के सभी सूत्र आपस में गुंथे हुए थे। सम्भवतः अभिलेखों से होकर लोकसाहित्य तक बिखरी हुई जितनी सामग्री इस आन्दोलन के बारे में उपलब्ध है, उतनी किसी अन्य के बारे में नहीं। जब बिरसा और उनके इस महान आन्दोलन पर यह पुस्तक मूलतः अंग्रेजी में प्रकाशित हुई थी, तब इसका गहरा प्रभाव सिर्फ़ आदिवासी आन्दोलन, झारखंड के साहित्य और समाज पर ही नहीं, बल्कि व्यापक रूप से समचे इतिहास लेखन के क्षेत्र पर पड़ा और बिरसा मुंडा का नायकत्व राष्टीय स्तर पर उभर कर सामने आया। प्रस्तुत संस्करण में बाद के परिवर्तनों और सन्दर्भो के अनुरूप कुछ नये विचार, नयी जानकारियाँ और कुछ महत्त्वपूर्ण सामग्री सम्मिलित है। आदिवासियों के महानायक बिरसा का उलगुलान अभी भी जारी है और उसकी प्रासंगिकता निरन्तर बनी हुई है।
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K.S. SINGH

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