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विज्ञापन कला
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‘प्रचार’ अपने आप में एक ऐसा तत्व है जो अपनी बात कहता है और कहते जाने में प्रवृत्त रहता है तथा दूसरे की बात सुनने में बहुत कम विश्वास करता है। इस प्रकार उसकी प्रक्रिया निरंतर अपनी कहते और करते जाना है, पर अपने इस करते जाने में दूसरी प्रतिक्रियाओं की परवाह अपने हित में करते रहता है। यहाँ यह स्पष्ट करना अधिक समीचीन प्रतीत होता है कि प्रचार का अर्थ मात्रा सूचना देना या समाचार देना ही नहीं है बल्कि अपने सूच्य विषयवस्तु के व्यापक प्रसार की परिणति या उपलब्धि का प्रयास भी होता है। प्रचार के माध्यम से अभिकर्ता अपने उद्देश्य की पूखत के लिए विविध उपकरणों का आश्रय ग्रहण कर निरंतर अपनी बात सम्प्रेषित करते रहने में व्यस्त रहता है और इस निरंतर सम्प्रेषण में अपनी उद्देश्यपूखत का ही प्रयास करता है।
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DR. MADHU DHAWAN

Books by DR. MADHU DHAWAN
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- BHARAT KAHAN JA RAHA HAI
- HINDI SAHITYA KA SANSHIPITA ITIHAS
- BOLCHAL KI HINDI AUR SANCHAR
- BHARATI GADYA-SANGRAHA
- Mahalaxmi Ji Kahan Rahti Hain Tatha Anya Kahaniyan
- KHAUF
- AAJ KI PUKAR
- LEKHAN KALA :EK PRICHAYA
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